Book Title: Pind Vishuddhi
Author(s): Kulchandrasuri, Punyaratnasuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 477
________________ ४४४ सङ्कियगहणे भोए, चउभङ्गो तत्थ दुचरिमा सुद्धा। जं सङ्कइ तं पावइ, दोसं सेसेसु कम्माई।।७८।। सङ्कियमक्खियनिक्खित्त-पिहियसाहरियदायगुम्मीसे। अपरिणयलित्तछड्डिय, एसणदोसा दस हवन्ति।।७७|| सचित्तचित्तपिहीए, चउभङ्गो तत्थ दुट्ठमाइतिग। गुरुलहुचउभङ्गिल्ले, चरिमे वि दुचरिमगा सुद्धा॥८२।। सच्चं तहवि मुणतो, गिण्हंतो वद्धए पसंग से। निद्धंधसो य गिद्धो, न मुयइ सजियं पि सो पच्छा।।२७|| सच्चित्ताचित्तमक्खियं, दुहा तत्थ भूदगवणेहि। तिविहं पढमं बीयं, गरहियइयरेहिं दुविहं तु॥७९॥ सञ्जोयणा पमाणे, इङ्गाले धूम कारणे पढमा। वसहि बहिरन्तरे वा, रसहेउं दव्वसञ्जोगा॥९४।। सट्ठाणपरट्ठाणे, परंपराणंतरं चिरित्तरिय। दुविहतिविहा वि ठवणा-ऽसणाइ जं ठवइ साहुकए॥३८॥ समणट्ठा उच्छिन्दिय, जं देयं देइ तमिह पामिच्च। तं दुटुं जइभइणी, उद्धारियतेल्लनाएण॥४४॥ सयमन्नेण च दिन्नं, कम्मियमसणाइ खाइ पडिसेवा। दक्खिन्नादुवओगे, भणिओ लाभोत्ति पडिसुणणा।।१४।। साहणजुत्ता थीदेवया व, विज्जा विवज्जए मंतो। अन्तद्धाणाइफला, चुन्ना नयणञ्जणाइया।।७३॥ साहम्मियस्स पवयण-लिङ्गेहि कए कयं हवइ कम्मी पत्तेयबुद्धनिण्हय-तित्थयरट्ठाए पुण कप्पे।।१२॥ साहुनिमित्तं ववियाइ, ता कडा जाव तंदुला दुछडा। तिछडा उ निट्ठिया, पाणगाइ जहसम्भवं नेज्जा॥११॥ सुहुमं कम्मियगंधग्गि-धूमबप्फेहिं तं पुण न दुटुं| दुविहं बायरमुवगरण-भत्तपाणे तहिं पढम।।३३।। सेसा विसोहिकोडी, तदवयवं जं जहिं जया पडियं। असढो पासइ तं चिय, तओ तया उद्धरे सम्म।।५५।। सोहग्गदोहगकरा, पायपलेवाइणो य इह जोगा। पिण्डट्ठमिमे दुट्ठा, जईण सुयवासिणमईण।।७४।। सोहन्तो य इमे तह, जइज्ज सव्वत्थ पणगहाणीए। उस्सग्गववायविऊ, जह चरणगुणा न हायन्ति॥१०१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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