Book Title: Pind Vishuddhi
Author(s): Kulchandrasuri, Punyaratnasuri
Publisher: Divya Darshan Trust
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४४१
परिशिष्ट-१ अकारादिक्रमेण पिण्डविशुद्धिप्रकरणमूलम्
अङ्गारसधूमोवम, चरणिन्धणकरण भावओ जमिह। रत्तो दुट्ठो भुञ्जइ, तं अङ्गारं च धूमं च॥९७॥ अच्छिन्दिअ अन्नेसिं, बलावि जं देंति सामिपहुतेणा। तं अच्छिज्जं तिविहं, न कप्पए नणुमयं तेहि।।५०॥ अट्ठवि कम्माइं अहे, बंधइ पकरेइ चिणइ उवचिणइ। कम्मियभोई अ साहू, जं भणियं भगवईए फुड।।७।। अणिसिट्ठमदिन-मणणुमयं च बहुतुल्लमेगु जं दिजा। तं च तिहा साहारण-चोल्लगजड्डानिसटुंति।।५१।। अपरिणयं दव्वं चिय, भावो वा दोण्ह दाण एगस्सा जइणो वेगस्समणे, सुद्धं नन्नस्स परिणमिय।।९०॥ असणाइ चउब्भेयं, आहाकम्ममिह बिन्ति आहार। पढम चिय जइजोगं, कीरतं निट्ठियं च तहिं।।९।। अहव न जिमेज रोगे, मोहुदये सयणमाइउवसग्गे। पाणिदयातवहेडं, अन्ते तणुमोयणत्थं च।।९९।। अहवा जं तग्गाहिं, कुणइ अहे संजमाउ नरए वा। हणइ व चरणायं, से अहकम्म तमायहम्मं वा॥६॥ आइन्नं तुक्कोसं, हत्थसयंतो घरेउ तिन्नि तहिं। एगत्थ भिक्खगाही, बीओ दुसु कुणइ उवओगं॥४७॥ आहाए वियप्पेणं, जईण कम्ममसणाइकरणं जं। छक्कायारम्भेणं, तं आहाकम्ममाहसु॥५॥ आहाकम्मपरिणओ, बज्झइ लिङ्गिव्व सुद्धभोई वि। सुद्धं गवेसमाणो, सुज्झइ खवगव्व कम्मे वि॥२५॥ आहाकम्मामंतण-पडिसुणमाणे अइकम्मो होइ। पयभेयाइ वइक्कम-गहिए तइएयरो गिलिए॥१८॥ आहाकम्मुद्देसिय, पूईकम्मे य मीसजाए या ठवणा पाहुडियाए, पाउयरकीयपामिच्चे।।३।। इच्चेयं जिणवल्लहेण गणिणा, जं पिण्डनिजुत्तिओ, किञ्ची पिण्डविहाणजाणणकए, भव्वाण सव्वाण वि। वुत्तं सुत्तनिउत्तसुद्धमइणा, भत्तीइ सत्तीइ तं, सव्वं भव्वममच्छरा सुयहरा, बोहिन्तु सोहिन्तु य॥१०३।। इय कम्मं उद्देसिय-तियमीसज्झोयरंतिमदुगं च। आहारपूइबायर-पाहुडि अविसोहिकोडित्ति॥५३॥ इय वुत्ता सुत्ताउ, बत्तीस गवेसणेसणादोसा। गहणेसणदोसे दस, लेसेण भणामि ते य इमे।।७६॥ इय सोलस सोलस दस, उग्गमउप्पायणेसणा दोसा। गिहिसाहूभयपभवा, पञ्च गासेसणाए इमे।।९३।। इह तिविहेसणदोसा, लेसेण जहागमं मएऽभिहिया। एसु गुरुलहुविसेसं, सेसं च मुणेज सुत्ताउ॥१००॥ उग्गमकोडिकणेण वि, असुइलवेणं व जुत्तमसणाई। सुद्धं पि होइ पूई, तं सुहुमं बायरं ति दुहा॥३२॥ उड्डमहोभयतिरिएसु मालभूमिहरकुम्भीधरणिठिय। करदुग्गेझं दलयइ, जं तं मालोहडं चउहा॥४९॥ उद्देसियमोहविभागओ य, ओहे सए जमारंभे। भिक्खाउ कइवि कप्पइ, जो एही तस्स दाणट्ठा॥२८।। एत्थ विसमेसु घेप्पइ, छड्डियमसणाइ होन्तपरिसाडिं। तत्थ पडन्ते काया, पडिए महुबिन्दुदाहरणं।।९२॥ कम्मगहणे अइकम्म-वइकम्मा तहइयारणायारा। आणाभङ्गणवत्था-मिच्छत्तविराहणा य भवे॥१७॥ कम्मियचुल्लियभायण-डोवठियं पूइ कप्पइ पुढो तं। बीयं कम्मियवग्घार-हिंगुलोणाइ जत्थ छुहे॥३४।। कम्मियवेसणधूमिय-महवकयं कम्मखरडिए भाणे। आहारपूइय तं, कम्मलित्तहत्थाइछिक्कं च।।३५।। कहियमिहो संदेसं, पयर्ड छन्नं च सपरगामेसु। जं लहइ लिङ्गजीवी, स दूइपिण्डो अणहा(8)फलो।।६१॥ किणणं कीयं मुल्लेणं, चउह तं सपरदव्वभावेहिं। चुनाइकहाइधणाइ-भत्तमङ्खाइरूवेहि।।४३॥
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