Book Title: Panchatantra Author(s): Vishnusharma, Motichandra Publisher: Rajkamal Prakashan View full book textPage 9
________________ ख्यानग्रन्थ की रचना की जो मूल पञ्चतन्त्र की विस्तृत वाचना मानी जाती है। ( Textus ornatior ) । पूर्णभद्र का ही ऐसा संस्करण है जिसका निश्चित समय ज्ञात है। उसने लिखा है कि उसके समय में पञ्चतन्त्र की पाठपरम्परा बिखर चुकी थी तब उसने पञ्चतन्त्र की सब उपलब्ध सामग्री को जोड़-बटोरकर उस ग्रन्थ का जीर्णोद्धार किया और प्रत्येक अक्षर, प्रत्येक पद, प्रत्येक वाक्य, प्रत्येक श्लोक और प्रत्येक कथा का उसने संशोधन किया । इस प्रकार प्राचीन कई परम्पराओं को एकत्र करके पूर्णभद्र ने एक नई रचना पञ्चाख्यान के रूप में प्रस्तुत की । इन अनेक वाचनाओं के मूल में जो पञ्चतन्त्र था उसका स्वरूप जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है । डॉ० एजर्टन ने ऊपर लिखी समस्त सामग्री की तुलना करके, पूर्णभद्र की तरह एक-एक अक्षर का तुलनात्मक विचार करके, मूल पञ्चतन्त्र का एक संस्करण तैयार किया जिसे उन्होंने पुनःघटित पञ्चतन्त्र (Panchatantra Reconstructed ) कहा है । उस पञ्चतन्त्र की भाषा, शब्दावली, शैली, कहने का ढंग, संक्षिप्त अर्थ - गर्भित वाक्यविन्यास और कथाओं का गठा हुआ ठाठ, इन सबको देखने से स्पष्ट जान पड़ता है कि गुप्तकाल की कोई अत्यन्त उत्कृष्ट कृति हमारे सामने आ गई है । आवश्यकता है कि मूल पञ्चतन्त्र के उस संस्करण की समस्त सांस्कृतिक सामग्री और शब्दावली का अध्ययन करके उसका अनुवाद भी हिन्दी - जगत् के लिए प्रस्तुत किया जाय । वह पञ्चतन्त्र निश्चय ही महान् साहित्यकार की विलक्षण कलापूर्ण रचना है जिसमें लेखक की प्रतिभा द्वारा कहानियाँ और संवाद अत्यन्त ही सजीव हो उठे हैं। डॉ० एजर्टन के शब्दों 9. भारत में पञ्चतन्त्र की विविध वाचनात्रों के सम्बन्ध की जानकारी के लिए मैं श्री योगीलाल जी संडेसरा के पञ्चतन्त्र के उपो का ऋणी हूँ ।Page Navigation
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