Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 7
________________ संस्करण उपलब्ध हैं। ये पाचीन पाठ-परम्पराएँ गिनती में आठ हैं-(१) तन्त्राख्यायिका; (२) दक्षिण भारतीय पञ्चतन्त्र; (३) नेपाली पञ्चतन्त्र; (४) हितोपदेश; (५) सोमदेव कृत कथासरित्सागर के अन्तर्गत पञ्चतन्त्र; (६) क्षेमेन्द्र कृत बृहत्कथा-मंजरी के अन्तर्गत पञ्चतन्त्र, (७) पश्चिमी भारतीय पञ्चतन्त्र; और (८) पूर्णभद्र कृत पञ्चाख्यान । (१) तन्त्राख्यायिका पञ्चतन्त्र की काश्मीरी वाचना है। इसकी प्रतियाँ केवल काश्मीर में शारदा लिपि में मिली हैं। इसका सम्पादन डॉ० हर्टल ने किया है। उनका मत है कि इसमें पञ्चतन्त्र का असंक्षिप्त और अविकृत पाठ है, किन्तु डॉ० एजर्टन तन्त्राख्यायिका को इतना महत्त्व नहीं देते। तन्त्राख्यायिका की रचना का समय अनिश्चित है। (२) दक्षिण भारतीय पञ्चतन्त्र की पाठ-परम्परा में एजर्टन का विचार है कि मूल पञ्चतन्त्र के गद्य-भाग का तीन चौथाई और पद्य-भाग का दो तिहाई सुरक्षित है। कुछ विद्वानों का तो यहाँ तक विचार है कि दक्षिण के महिलारोप्य नामक नगर का पञ्चतन्त्र में कई बार उल्लेख होने से मूल पञ्चतन्त्र की रचना वहाँ ही हुई होगी। (३) नेपाली पञ्चतन्त्र में किसी समय गद्य-पद्य दोनों थे। पीछे किसी ने पद्य-भाग अलग कर लिया जो आज भी उपलब्ध है। उसका गद्य-भाग लुप्त हो गया। संयोग से मूल का एक गद्य-वाक्य इसमें बचा रह गया है। इस बाचना में एक भी श्लोक ऐसा नहीं जो दक्षिण भारतीय वाचना में न हो किन्तु फिर भी जिस पाठ-परम्परा से इस वाचना का जन्म हुआ वह दक्षिण भारतीय पञ्चतन्त्र से पृथक थी। (४) हितोपदेश संस्कृत-साहित्य में इस समय पञ्चतन्त्र से भी अधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है। उसके कर्ता नारायण भट्ट ने पञ्चतन्त्र की परम्परा में किन्तु बहुत-कुछ गद्य और पद्य-भाग की स्वतन्त्रता लेकर नौ सौ ईसवी के आसपास हितोपदेश की रचना की । पञ्चतन्त्र में पाँच तन्त्र हैं, लेकिन हितोपदेश

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