Book Title: Panchatantra
Author(s): Vishnusharma, Motichandra
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 10
________________ ( १२ ) में पञ्चतन्त्र के उस मूल रूप को जब हम दूसरी वाचनात्रों से मिलाते हैं तो यह बात एकदम स्पष्ट हो जाती है कि वह न केवल साहित्यिक सौन्दर्य की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है किन्तु सबसे सुन्दर निखरी हुई और निपुणतम रचना है। डॉ. मोतीचन्द्र का प्रस्तुत अनुवाद पश्चिम भारतीय पञ्चतन्त्र की वाचना के अनुसार प्रकाशित निर्णयसागर संस्करण को अाधार मानकर किया गया है। यही संस्करण इस समय सबसे अधिक सुलभ और लोकप्रिय है । हिन्दी में पञ्चतन्त्र के पहले भी कई अनुवाद किये गए थे जो पुरानी हिन्दीपुस्तकों की खोज में प्राप्त हुए हैं। खेद है कि अभी तक पञ्चतन्त्र की उस परम्परा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आधुनिक समय में भी पञ्चतन्त्र के कुछ अनुवाद हिन्दी में हुए हैं। प्रस्तुत अनुवाद की विशेषता यह है कि इसमें मुहावरेदार हिन्दी भाषा का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया गया है जिससे पञ्चतन्त्र के नोक-झोंक-भरे संवादों और अोजपूर्ण प्रसंगों का सौन्दर्य बहुत ही खिल गया है। हिन्दी-अनुवाद प्रायः स्वतन्त्र ऊँचता है; संस्कृत के सहारे उसे नहीं चलना पड़ता। आशा है यह अनुवाद पञ्चतन्त्र के हिन्दी-अनुवादों के लिए एक नई शैली और दिशा का पथ-प्रदर्शन करेगा। वैसे तो यह कहा जा सकता है कि राइडरकृत पञ्चतन्त्र के अंग्रेजी अनुवाद मैं भाषा और भाव दोनों के नुकीलेपन का जो आदर्श बन गया है उस तक पहुँचने के लिए हिन्दी में अभी कितने ही प्रयत्न करने होंगे । विशेषतः हमें तब तक सन्तोष न मानना चाहिए जब तक पञ्चतन्त्र के संस्कृत-श्लोकों का अनुवाद हिन्दी के वैसे ही चोखे, नुकीले और पैने पद्यों में न हो जाय।। मूल की भाषा या अनुवादों के गुणों के अतिरिक्त पञ्चतन्त्र का जो सच्चा महत्त्व और दृष्टिकोण है उसकी ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। विष्णु शर्मा ब्राह्मण ने सिंहनाद करते हुए घोषणा की थी कि पञ्चतन्त्र की युक्ति से छः महीने के भीतर वह राजपुत्रों को नीति-शास्त्र में पारम्गत बना देगा। उसकी दृष्टि में पञ्चतन्त्र वह ग्रन्थ है जिसके नीतिशास्त्र को जान लेने पर और कहानियों की सहायता से उसमें रम जाने पर कोई व्यक्ति जीवन की होड़ में हार नहीं मान सकता, फिर चाहे इन्द्र ही उसका वैरी क्यों न हो।

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