Book Title: Nirvankalika Author(s): Padliptsuri, Jinendravijay Gani Publisher: Bhuvan Sudarshan Jain Granth Mala Devali Rajasthan View full book textPage 3
________________ श्री भुवन-सुदशन जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थांक-२७ ॥ अहम् ।। णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स। श्री विजयदानप्रेमरामचन्द्रभुवनसुदर्शनमूरिभ्योः नमः। श्री विजयकरामृतमूरिभ्यो नमः । गुणशेखर वाचनाचार्य श्रीमद् मण्डनगणिवर शिष्यरत्न-विद्याधरवंशभूषण-गुणमणिनिधि श्रीमत्पादलिप्ताचार्यवरविरचिता 卐 निर्वारण कलिका ॥ सा च पूज्यपाद् तपागच्छाधिपति श्रीमद्विजयरामचन्द्रसूरीश्वर-प्रथमपट्टधर पूज्याचार्यदेव श्रीविजयभुवनसूरीश्वर प्रथमपट्टधर-देशनादक्षमालवदेशप्रभावक पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमद्विजयसुदर्शनसूरीश्वराणां अर्धशताब्दिकालीन निर्मलचारित्रययार्यानुमोदनार्थ भाविकः प्रदत्तसहायेन प्रकाशिता । संपादकः संशोधकश्च-पूज्यपल्यास श्रीजिनेन्द्रविजय गणिवरः । वीर सं० २५०७ : विक्रम सं० २०३७ : सन् १९८१ : मूल्य रु०८-०० : प्रतय: ५०० प्रकाशिका-श्री भुवनसुदर्शन जैन ग्रन्थमाला- देवाली (राजस्थान) Jain Education Inter For Private & Personal Use Only nelibrary.orgPage Navigation
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