Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 19
________________ १८ / नए मंदिर : नए पुजारी महेश : नहीं, तू चोटी में कैसे लगाएगी ! इसे तो मैं अपनी कमीज में लगाऊंगा। लोमड़ी की पूंछ जैसी तो तेरी चोटी है। उसमें यह इतना बड़ा फूल क्या अच्छा लगेगा ? माधुरी : हमारी किताब में लिखा है, लड़कियां अपनी चोटी में फूल लगाती हैं। महेश : ऐसा है तो तू चमेली का सफेद फूल लगा लेना। हमारे ड्राइंग मास्टर कहते हैं कि काले पर सफेद रंग बहुत अच्छा खिलता है। तेरे काले बालों पर भी चमेली का सफेद फूल बड़ा अच्छा लगेगा। माधुरी : नहीं, नहीं। चमेली का फूल तू अपनी शर्ट में लगा लेना। गुलाब का फूल तो मैं अपनी चोटी में ही लगाऊंगी। महेश : तू कैसे लगाएगो ? मैं सुबह उठते ही इसे तोड़कर छिपा दूंगा। तव तू फिर (अंगूठा दिखाकर) यह लगाना। माधुरी : तू ऐसा करेगा तो मैं आज शाम को ही इसे तोड़ लूंगी। फिर तू देखते रहना। यों तकरार करते-करते दोनों आगे बढ़ गए। गुलाब पीछे छूट गया और थोड़ी देर में वे एक आम के पेड़ के नीचे आ गए। अब वे आम की बातें करने लगे। बातें क्या करने लगे, अपनी सूरत बिगाड़-बिगाड़ कर आम खाने का अभिनय करने लगे। माधुरी ने कहा कि मैं दो आम खाऊंगी। महेश ने कहा-मैं चार आम खाऊंगा। माधुरी : मैं दस खाऊंगी। महेश : मैं सौ खाऊंगा माधुरी : मैं सारे आम खाऊंगी। महेश : तुमसे सारे आम खाए जाते हैं ? इतने आम खाने से तुमको दस्त नहीं लगने लगेगी? माधुरी : तू सौ खाएगा तो तुझको दस्त नहीं लगेंगी? महेश : पर मैं तो धीरे-धीरे खाऊंगा। माधुरी : तो फिर मैं भी धीरे-धीरे नहीं खालूंगी ? कुछ पापा को भी दूंगी। थोड़े से तुमको भी दे दूंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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