Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 98
________________ विवशता | ६७ सदस्य-दान करने वाले तो बहुत सारे होंगे । सबका नाम कैसे लगाया जा सकेगा ? हां, अन्दर एक ओर उनके नाम की सूची अवश्य लगाई जा सकती है। सेठजी-नहीं, मेरा मतलब था कि कोई आदमी पैसा लगाता है तो प्रति दान अवश्य चाहता है। अतः ऐसा करें, जो व्यक्ति सबसे ज्यादा पैसा दे उसका नाम ऊपर लगवा दें। सदस्य-~-दान का सबसे बड़ा प्रतिदान तो त्याग ही है । यह तो भगवान का मन्दिर है। हम इसे भगवान का मन्दिर ही रहने देना चाहते हैं । यह उचित नहीं लगता कि ऐसे स्थान पर पैसे को बिठाया जाए। सेठजी-नहीं, मेरा मतलब आप समझे नहीं। ऊपर और नीचे नाम लिखने में कोई फर्क नहीं है। जैसा नीचे वैसा ऊपर । इस अच्छे काम में किसी का नाम ऊपर आता है तो हमें एतराज नहीं होना चाहिए। सदस्य - हमारा आशय तो यही है कि किसी के पास यदि धन है तो उसका सदुपयोग किया जाए। पूर्व के पुण्य से उसे धन मिला है। आगे के पुण्य के लिए उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए। यदि नाम ऊपर आयेगा तो उस व्यक्ति का पुण्य क्षीण होगा। हम नहीं चाहते कि हम उसके निमित बने । सेठजी- मैं आपके विचार से सहमत हूँ, पर आजकल जमाना ही ऐसा है कि सीधी अंगुली से घी निकलता ही नहीं। यदि कोई इस बहाने भी अपना कुछ पैसा इस पुण्य कार्य में लगता है तो हमें उसे अवसर देना चाहिए, यह मेरा सुझाव है। आप लोग भी मेरे सुझाव पर विचार करें। इस शुभ काम में यदि कुछ समय लग जाए तो भी कोई बात नहीं है, पर हमारा काम सब दृष्टियों से उत्तम होना चाहिए। पैसे की अपने पास कोई कमी नहीं है। पास वाले गांव की अपेक्षा अपना कार्य बढ़िया होना चाहिए। यह किसी का व्यक्तिगत अहंकार नहीं है, अपितु सारे गाँव के गौरव का सवाल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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