Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 100
________________ विवशता / ६६ पर उसके लिए हमारा काम नहीं रुकना चाहिए । 1 अर्थमंत्री के पास पैसा तो अधिक नहीं था, पर उसकी बात का इतना भरोसा था कि वह सबके दिल में जंच गई। सब जानते थे कि वह जो कह देता है, उसे करके छोड़ता है । अतः सारे गांव में उत्साह की एक जबरदस्त लहर दौड़ गई। सभी लोगों ने . अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार, बल्कि उससे कुछ ज्यादा ही धन दिया । जो लोग आर्थिक सहयोग करने की स्थिति में नहीं थे, उन्होंने श्रमदान करना शुरू कर दिया। सभी लोग अनुभव कर रहे थे, जैसे यह उनका अपना घर ही बन रहा है । बड़ेबूढ़े और सम्पन्न लोग भी श्रमदान कर अपने-आप को पुण्यशाली मान रहे थे । एक बुढ़िया तो पत्थर ढोते हुए गिरकर मर भी गई, पर किसी ने उसके प्रति दुःख प्रकट नहीं किया। सभी लोगों ने यही कहा कि वह बहुत भाग्यशालिनी थी, जो उसकी हड्डी मन्दिर की नींव में काम आयी । किसी की मजदूरी का तो कोई प्रश्न ही नहीं था । केवल बाहर से जो कारीगर आये थे, उनकी मजदूरी चुकानी पड़ती थी। आर्थिक सहयोग भी अपने आप जुटता जा रहा था । न जाने कहां से पैसा आता ? किसी बात की कमी नहीं अनुभव हो रही थी । सभी का एक ही स्वर था कि मन्दिर शानदार बने । इतना शानदार कि आसपास के लोग उसे देखने के लिए आएं । समुद्र के सामने एक ऊंचे टीले पर जोरों से काम चल रहा था । और अब तो पूर्व योजना में भी बहुत अंतर आ गया था । पहले की अपेक्षा अब आगे बढ़ गई थी, फिर भी काम दिन दूना और चल रहा था । वह दुगुनी से रात चौगुना सेठ की कल्पना थी कि गांव के लोग उसके पास आकर नाक रगड़ेंगे । वे बड़े अहसान के साथ अपना नाम मन्दिर के साथ जोड़ेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ । कोई आदमी उसके पास चन्दा मांगने के लिए भी नहीं आया। हां एक दिन एक्साइज ऑफिस की ओर से पत्र अवश्य मिला। उस में उनके गुप्त व्यवसाय के बारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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