Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 76
________________ पुनरावृत्ति / ७५ का अनुभव नहीं करती थी। वास्तव में प्रेम ही हमारे सारे अभावों को भरता है । इसी प्रवाह में बहते हुए हम भी बड़े उल्लास और उत्साह से इधर-उधर घूम रहे थे। कभी हम छतरियों की सुन्दर तराश को देख रहे थे, तो कभी पाल के सुदृढ़ वास्तु-शिल्प को देख रहे थे । कभी पानी की लहरों को देख रहे थे, तो कभी उन पर तैरने वाली मछलियों को। तालाब खूव भर गया था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। हम लोग घूमते-घूमते बाँध के दक्षिणी किनारे पर आ गये । वहां पर एक छोटा-सा मन्दिर था । हम उसके अन्दर चले गये । अचानक अचला का मन अपने भावी शिशु की कल्पना में कुलाचें भरने लगा । उसने प्रतिमा की ओर देख संकोचभरे स्वरों में कहा–यदि मुझे लड़का हुआ तो मैं उसे इसी वर्ष इसी प्रतिमा के चरणों में लिटाऊंगी। वास्तव में यह एक संकल्प नहीं, अपितु मनौती थी । यह अचला की पुत्र-कामना की अभिव्यक्ति थी। मैंने उसे दुलारते हुए कहा अरे ! इसी वर्ष क्या मैं तुम्हें और तुम्हारे बेटे को हर वर्ष इस प्रतिमा के दर्शन कराऊंगा। आओ, हम भगवान से वरदान मांगें कि वे हमें पुत्र प्रदान करें। भावना के तीव्र प्रवाह में बहते-बहते अत्यन्त श्रद्धा और विश्वास के साथ हमने अपने भावी पुत्र का नाम भी तय कर लिया था ! कितना सुन्दर था वह नाम देवदत्त । सचमुच हमारी श्रद्धा के अनुरूप हमें पुत्र ही प्राप्त हुआ। उसी वर्ष दशहरा की छुट्टियों में ही हम देवदत्त को लेकर राजसमंद के उस अज्ञात नामा देव-मंदिर में उपस्थित हुए। उस वर्ष हमारे साथ अनेक सम्बन्धी भी थे । मेरे भाई-बहन, अचला के भाई-बहन आदि । हमारी वह यात्रा बड़ी सुखद रही। सब लोगों ने हम पर जी भर कर आशीर्वाद बरसाये। सभी हमारे पति-पत्नी की जोड़ी पर खुश थे। यद्यपि मैं अपने अभावों से बेखबर नहीं था, पर जो आदमी सदा अभावों में ही जीता है वह जीवन का रस नहीं ले सकता? आज तो जैसे मेरे सारे अभाव भी छूमंतर हो गए थे। अचला तो उस दिन अत्यन्त प्रसन्न थी। उसने अत्यन्त श्रद्धा भाव से अपने हाथों से देवदत्त को प्रतिमा के चरणों में लिटाया। तब से ही राजसमंद हमारा पर्यटन केन्द्र ही नहीं रह गया, अपितु श्रद्धा-केन्द्र भी बन गया। पर्यटन का रंग तो अवस्था के साथ अलबत्ता कुछ फीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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