Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 82
________________ परिवर्तन / ८१ धीरे-धीरे पिताजी निर्बल होते गये । मेरी अवस्था बहुत छोटी थी, फिर भी मुझे मजदूरी पर लगाया गया। पिताजी को मेरे पर दया तो आती, पर क्या किया जाय ! घर का खर्चा चलाने के लिए यह आवश्यक था कि मैं भी कच्ची उम्र में ही मजदूरी के जुए में जोत दिया जाऊँ। जब मुझे पहले महीने की तनख्वाह मिली तो पिताजी मुझे भी अपने साथ अड्डे पर ले गये । शायद इन्होंने सोचा होगा कि जब उनको थकान आती है तो मुझे भी कैसे नहीं आती होंगी ? इसलिए वे मुझे अपने साथ ले गये और मुझे भी थोड़ी पिलाई। यद्यपि पहले दिन मुझे उसका स्वाद अच्छा नहीं लगा, पर मेरे मन में कौतू-हल था कि पिताजी रोज पीते हैं। देखना चाहिए, इसमें क्या खास बात है ? मुझे भी थोड़ी दारू पीकर ताजगी महसूस हुई। धीरे-धीरे यह क्रम बढ़ने लगा । बहुधा पिताजी मुझे भी अपने साथ दारू पिलाते। फिर तो ऐसी आदत हो गई कि पिताजी नहीं पिलाते तो मुझे स्वयं उसकी व्यवस्था करनी पड़ती। पैसा मेरे हाथ में नहीं आता था, अतः मुझे अपने हमउम्र दोस्त ढूँढ़ने पड़ते । वैसे तो उनमें कुछ तो स्वयं भी दारू के आदी थे, पर कुछ दोस्तों को पिलाना सिखाने का श्रेय मुझे भी मिला है। पैसे की तंगी होती, तो हम लोग चोरी करते । जब भी चोरी का पैसा मिलता तो हम लोगों की पार्टी अपने-आप जम जाती थी। अक्सर हम ग्रप में चोरी करते थे और साथ में ही शराब पीते थे । हम लोगों में ऐसी दोस्तीहो गई थी कि हम एक दूसरे की पूरी मदद करते थे। यद्यपि हमारे में कभी-कभी आपस में झगड़े भी होते थे, पर फिर भी हमारी दोस्ती इतनी गहरी थी कि एक दूसरे का सहयोग करने में हम आगा-पीछा नहीं करते थे। जब कभी व्यक्तिगत चोरी का अवसर मिल जाता तो हम आनंद से एक दूसरे को सिगरेट पिलाते, चाय पिलाते, सिनेमा दिखाते, कभी-कभी होटल में भी गुलछर्रे उड़ाते थे । सिनेमा से हमें अनेक प्रकार की शिक्षायें मिलीं। कई गंदे गाने हमें याद हो गये। गंदे फोटो भी हमें कहीं न कहीं मिल जाते थे। किसी भी लड़की को देखकर क्या फिकरे कसना, यह हमें ज्ञात हो चुका था। मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब रहने लगा था। किशोर अवस्था में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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