Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 75
________________ पुनरावृत्ति पिछले 20 वर्षों से में हर वर्ष दशहरे की छुट्टियों में सपरिवार राजसमन्द चूमने आया करता हूं । मेरे जैसे सामान्य शिक्षक के लिए यह तो असम्भव है कि कश्मीर, नैनीताल या आबू जैसे पर्वतीय स्थानों पर घूमने जा सकू । परपढ़ा-लिखा होने के नाते जीवन का रस लेने की ललक मुझ में है । अत: राजसमंद को ही पर्यटन-केन्द्र मानकर मैं हर वर्ष यहां आया करता हूं। मेरा मानस उस समय कुछ हल्कापन महसूस करता है, जब मैं अपने समानधर्मा कुछ लोगों को ही नहीं, अपितु कुछ समृद्ध लोगों को भी यहां घूमते देखता हूं। जब दूर-दूर के लोग यहां आकर खुशी मना सकते हैं, तो मेरे लिए अपने-आपको संतुष्ट नहीं कर लेने का कोई कारण दिखाई नहीं देता। इसलिये अपने-आपको तरो-ताजा करने के लिए मैं हर वर्ष यहां आया करता हूं। पर आज यहां जो कुछ देख रहा हूं, उससे मेरे पुराने घाव के टांके फिर टूट गये हैं। एक नौ-दस वर्ष का लड़का तालाब में स्नान करने का आग्रह कर रहा है। उसकी मां हाथ पकड़े उसे रोक रही है, और मैं बीस वर्ष के अतीत की गहराई में उतर गया। ठीक यही दिन था, जब मैं अपनी पत्नी अचला के साथ पहले-पहल यहां घूमने के लिये आया था। उस समय हमारे परिवार में हम दो ही सदस्य थे। हम लोग उन्मुक्तता से तालाब की पाल पर घूम रहे थे । उस समय जवानी का रंग था । अचला ने पहली बार गर्भ धारण किया था। मैं उसे अधिक से अधिक सुख देना चाहता था। मेरे प्रेम से अचला इतनी तृप्त थी कि वह मुझसे सम्पन्न लोगों को देखकर भी मन में हीनता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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