Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad

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Page 48
________________ अनुकरण | ४७ दिया। इसलिए कमला कमल बन गई। कमला के लिए इसका कोई मतलब नहीं था कि वह कमला बनकर जीये या कमल बनकर जीये । पर इतना सच है कि सारे परिवार में उसका एकछत्र साम्राज्य था। समय पर उसके भाइयों की कोई इच्छा अपूर्ण रह जाती थी, पर कमला की कोई इच्छा अपूर्ण नहीं रहती। वह यदि घर में कोई तोड़-फोड़ भी कर देती तो किसी को असह य नहीं लगती थी। वह यदि कभी जरा सी रो भी देती तो तत्क्षण दादा का रोष पूर्ण स्वर गूंज उठता—क्या बात है, कमल क्यों रो रहा है ? दादा जहां भी जाते उसे अपने साथ ले जाते । भोजन तो वह उसके बिना करते ही नहीं थे । यही कारण था कि कमला ने कभी अपने ननिहाल का मुख तक नहीं देखा । नाना-नानी, मामा-मामी बिचारे उसकी एक झलक देखने के लिए तरसते रहते थे, पर इस के लिए उन्हें स्वयं कमला के घर ही आना पड़ता था। इसका यह अर्थ नहीं है कि कमला उच्छृखल थी। बहुत बार उन्मुक्त वातावरण आदमी को उच्छृखल बना देता है पर कमला की हर उच्छृखलता में भी एक शालीनता होती थी। यही कारण था कि वह जिस ओर से निकल जाती उस ओर से मायूसी हवा हो जाती थी। सभी लोग उसकी सन्निधि से जैसे प्रफुल्ल हो उठते थे। उसकी अस्पष्ट जबान सबको इतनी प्यारी लगती थी कि हर कोई उससे बात करना चाहता था। अपनी बाल-सुलभ चपलता से बह हर एक का मन मोह लेती। बल्कि कभी-कभी तो वह ऐसी बात कह देती थी, जिससे न केवल घर के लोग खिलखिला उठते थे, अपितु उसकी गहराई में डूब जाते थे । कमला घर में घटने वाली हर घटना का बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन करती थी। यही तो वह अवस्था है जब आदमी का वास्तविक निर्माण होता है। इस अवस्था में उसे जैसा देखने-सुनने को मिलता है, वही उसके जीवन का अंग बन जाता है । बाद में मकान के रंग-रोगन में भले ही परिवर्तन आ सकता है, पर जो नींव इस अवस्था में पड़ जाती है वह स्थिर बन जाती है। पर वातावरण के साथ-साथ एक सवाल यह भी है कि बच्चा किस सतर्कता या मनोदशा से उसे ग्रहण करता है। कभी-कभी बुरे वातावरण के भी अच्छे संस्कार तथा अच्छे वातावरण के भी गलत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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