Book Title: Naye Mandir Naye Pujari
Author(s): Sukhlalmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
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बचत की आदत / ४१
फुर्सत हो! सब अपने काम में इतने व्यस्थ रहते हैं कि दूसरों की ओर आंख उठाना भी मुश्किल है। फिर भाषा की भी एक कठिनाई थी । सेठ जी ठेठ राजस्थानी बोलते थे। बम्बई में राजस्थानी बोलने वाला कौन मिलता ? इसके अतिरिक्त पुरानी पीढ़ी के लोगों के लिए बम्बई का उन्मुक्त जीवन भी एक सिर दर्द बन जाता है। इसीलिए सेठजी को बम्बई का जीवन रास नही आता था। वे तो अपने गांव में ही रहना चाहते थे, पर उनके बेटे-पोते बम्बई में रहें तो वे अकेले गांव में कैसे रह सकते थे ? अतः उन्हें मन मसोस कर यहीं रहना पड़ता था।
पर जब से पूसाराम बम्बई आया तब से सेठजी बड़े प्रसन्न रहते थे। न तो पूसाराम को कोई काम था और न सेठ जी को। अतः वे घंटों बैठे रहते और अपने गांव की पुरानी यादों में खो जाते । कभी कुए की बात चलती तो कभी तालाब और बूढ़े पीपल की, कभी नाई -कुम्हार की बात चलती तो कभी किसी सेठ सेठानी की । इसी सिलसिले में सेठ जी ने कहा-पूसाराम ! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे और मेरे जीवन में यह जो अन्तर आ गया है, इसका राज क्या है ?
पूसाराम ने कहा-सेठ जी! इसके तो अनेक कारण हैं, पर सबसे बड़ा एक कारण है कि आप भाग्यवान हैं । सेठजी-हां यह तो ठीक हैं कि भाग्य बड़ी चीज है, पर यदि आदमी प्रयत्न
न करे तो कुछ भी नही हो सकता। सच पूछा जाये तो यह सारी करामात उन्नीस सो छियानवे की है। तुमको याद होगा कि उस साल फसल कितनी तगड़ी हुई थी। वह किसी एक आदमी के भाग्य का सवाल नहीं था। उस साल हर आदमी के खेतों में इतना अनाज पैदा हुआ था कि समेटे नही सिमटता था । उस साल तुम्हारे भी पांच सौ मन बाजरी हुई थी, मेरे भी पाँच सौ मन हुई थी। हमारे कोठे भर गए थे। तुमने उस साल अपने बाप का मृत्यु भोज किया था । आसपास के कितने लोग आये थे तुम्हारे दरवाजे पर ! तुमने भी क्या दिल खोल कर काम किया था । उसदिन जब लोग तुम्हारी वाह-वाही कर रहे थे तो मुझे भी लगा कि तुम कितने सौभाग्यशाली हो । यद्यपि जब तुमने मुझ
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