________________
दूरदर्शितापूर्ण व्रत
भगवान् महावीर ने एक श्रावक के लिए इस व्रत का विधान किया था- मैं शस्त्र का निर्माण नहीं करूंगा । उसका आदान-प्रदान नहीं करूंगा । शस्त्र के पुर्जों का संयोजन नहीं करूंगा।' आजकल हथियार के कल-पुर्जों का संयोजन होता है । हवाई जहाज अपने यहां बनाया और इंजन बाहर से खरीदा। टैंक अपने यहां विकसित किया, उसमें इंजन, राकेट और तोप दूसरे देश की उन्नतशील किस्म की लगाई । एक श्रावक के लिए कितना दूरदर्शितापूर्ण व्रत था, जो अहिंसा के प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग
बना था ।
जीवन-शैली बदले
अहिंसा के प्रशिक्षण का एक सूत्र है - जीवन-शैली का परिवर्तन। इस परिवर्तन के बिना अहिंसा के प्रशिक्षण की बात पूरी नहीं होगी। बहुत आवश्यक है जीवन-शैली का बदलाव । जीवन-शैली अच्छी नहीं है तो उसमें हर किसी को असफलता ही मिलेगी ।
एक बार कुबेर अपने एक उपासक पर प्रसन्न हो गए और उसे अपने लोक में ले गए। कुबेर ने अपना खजाना दिखाते हुए कहा- तुमने मेरी बहुत भक्ति की है । मैं तुमसे प्रसन्न हूं। तुम इस भण्डार में जा सकते हो और जितना द्रव्य चाहो, इस भण्डार से ले जा सकते हो । भक्त भीतर गया। खजाने को देखकर आंखें फटी की फटी रह गईं । एक से एक बढ़कर चमकती मणियों की चकाचौंध में वह कुछ भी लेने का निर्णय नहीं कर सका । जिस रत्न को हाथ में लेता, आगे वाला रत्न उससे और भी ज्यादा मूल्यवान् और सुन्दर प्रतीत होता । इसको लूं कि उसको लूं, इसी ऊहापोह में एक घण्टा बीत गया । खजाने का चौकीदार आया । 'महाशय ! समय समाप्त' - भक्त को यह कहकर बाहर निकाल दिया । उसने कहा- 'मैं तो कुछ ले ही नहीं सका और तुमने बाहर निकाल दिया ।' चौकीदार ने कहा - 'मूर्ख हो तुम। आज तक तुम्हारे जैसे हजारों यहां आ चुके हैं। इस दरवाजे से प्रवेश कर उस दरवाजे से बाहर खाली हाथ निकल गए। कुछ भी साथ में नहीं ले जा सके ।'
४६ : नया मानव : नया विश्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org