Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 231
________________ का शासन था। लम्बी बातचीत चली। उदास और तनावग्रस्त देखकर पूज्य गुरुदेव ने उनसे कहा-'आपको प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करना चाहिए। उन्हें कुछ प्रयोग भी बताए गए। उसके बाद इन्दिरा जी ने हमें कुछ नहीं बताया, किन्तु पुपुल जयकर को सारी बातें बताईं। पुपुल जयकर ने इन्दिरा गांधी के जीवन के बारे में जो पुस्तक लिखी, उसमें लिखा है-इन्दिराजी ने मुझे बताया कि मैं आचार्य तुलसी के पास गई। वहां ध्यान के कुछ प्रयोग सीखे, उनसे मुझे काफी शान्ति मिली। उन दिनों संजय जेल में था। मैं तनाव में थी किन्तु आचार्य तुलसी से मिलने के बाद मैंने बड़ी शान्ति अनुभव की।' सामान्यीकरण करें एक नहीं, अनगिनत अनुभव हैं सबकी सचाई एक ही है। जीवन विज्ञान कला भी है और विज्ञान भी है। यह जीने की कला है, जीने का विज्ञान है। विज्ञान इस अर्थ में है कि इसमें वैज्ञानिक सत्यों का प्रतिपादन है। जीने की कला हर व्यक्ति को सीखनी चाहिए, चाहे वह विद्या की किसी भी शाखा में जाए। इसका विशिष्टीकरण नहीं, बल्कि सामान्यीकरण करना होगा। जो शान्ति से जीना चाहता है और अहिंसा के साथ जीना चाहता है, उसे जीवन विज्ञान अपनाना ही होगा। आज सबसे बड़ी समस्या हिंसा की है। हिंसा का आशय केवल मारकाट से ही नहीं है। हर क्षेत्र में हिंसा व्याप्त है और उस हिंसा के स्फुलिंग नाना रूपों में सामने आ रहे हैं। यही कारण है कि सीमा सुरक्षा के लिए सरकार जितनी चिंतित है, उसे कहीं ज्यादा आन्तरिक सुरक्षा के लिए चिन्ता है। इसका अगर कोई दीर्घकालीन नीतिगत उपाय नहीं सोचा गया तो एक दिन जंगल और नगर में कोई अन्तर दिखाई नहीं देगा। जंगली कानून नगर में भी लागू हो जायेगा। हिंस्र पशु और मनुष्य में फिर शायद अन्तर नहीं रहेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने एनीमल ब्रेन को निष्क्रिय बनाएं और नियोकार्टेक्स या रीजनिंग माइण्ड को अधिक जागृत और सक्रिय बनाएं, जिससे कि हम हिंसा को कम कर सकें। अगर शिक्षातंत्र के अधिकारियों ने इस सचाई को नहीं समझा तो इक्कीसवीं शताब्दी का युवक अवश्य यह कहेगा- हमारे पूर्वज बहुत समझदार नहीं थे। उन्होंने हमारे साथ, भावी पीढ़ी के साथ न्याय नहीं किया। यह बड़ा गम्भीर प्रश्न जीवन विज्ञान के प्रयोग : २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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