Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 240
________________ एक से दो हुए तब हम विश्व के साथ जुड़ गए। जहां व्यक्ति की चर्चा करते हैं, वहां मानव और विश्व-यह रूप बनेगा और जहां सामुदायिक चेतना की चर्चा हो, वहां हमारा तार्किक आधार बदल जायेगा, भाषा का आकार बदल जायेगा और वह होगा विश्वमानवं । विश्व पहले आ जायेगा और मानव बाद में । विश्वमानव हमारी सामुदायिक चेतना है। इस भूमिका पर कोई भी व्यक्ति अपने आपको पहले नहीं देखेगा। वह पहले विश्व को देखेगा, फिर आपने आपको देखेगा। किन्तु यह स्पष्ट है- यह हमारी परस्परता की भूमिका बन सकती है, व्यवस्था की भूमिका बन सकती है, किसी समाज या राजनीतिक प्रणाली की भूमिका बन सकती है, किन्तु हमारी पवित्रता की भूमिका नहीं बन सकती। दूसरी भूल विश्वमानव के आधार पर होने वाली प्रणाली तभी पवित्र रहेगी, जब उसकी पृष्ठभूमि में मानवीय चेतना या वैयक्तिक चेतना की भूमिका पवित्र बनी हुई है। इतिहास को देखें। जितनी को-ओपरेटिव सोसायटियां हुई हैं, उनका रेकार्ड अच्छा नहीं रहा है। वैयक्तिकता के पुट के बिना सामुदायिकता कभी चलती नहीं है। इसीलिए जहां साम्यवादी प्रणाली थी, वहां भी व्यक्तिगत स्वामित्व की स्वीकृति देनी ही पड़ी। सोवियत संघ ने अपने अंतिम दिनों में दी और चीन को भी देनी पड़ी। आंशिक ही सही, पर इस सचाई को स्वीकार करना पड़ा-वैयक्तिक स्वामित्व की स्वीकृति के बिना कम्यून की बात या सामुदायिक राष्ट्रीय संग्रह की बात आगे नहीं बढ़ती। यह अनुभव किया गया-जो पूंजीवाद राष्ट्र थे, वे आर्थिक क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गए और समाजवादी पिछड़ गए। एक भूल हुई-वैयक्तिकता को सर्वथा नकार दिया गया और केवल सामुदायिकता को स्वीकार कर लिया गया। अब दूसरी भूल होने जा रही है-वैयक्तिकता को पवित्रता की भूमिका न देकर केवल उपभोक्ता की भूमिका पर विकसित किया जा रहा है। पूंजीवाद भी कितना टिक पायेगा, कहा नहीं जा सकता। इसकी भूमि भी लड़खड़ाती प्रतीत हो रही है। यह भी उतनी ही खतरनाक है। आप यह सोच सकते हैं-यह कैसी बातें कही जा रही हैं कि वैयक्तिकता की भूमि को भी खतरा है और २२२ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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