Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 225
________________ पुस्तकाधारित शिक्षा चल रही है और कच्चे दिमाग पर इतना भार बढ़ रहा है, अच्छा तो बिल्कुल नहीं है। एक-दो पुस्तकों का भार और बढ़ जायेगा, इससे होगा क्या ? चन्दनमल जी बैद ने कहा-हम और क्या कर सकते हैं ? गुरुदेव ने कहा-कुछ चिन्तन करो। गलत नहीं, अपर्याप्त है। शिक्षा मंत्री ने पूरे मंत्रालय की एक संगोष्ठी बुलाई। सचिव, अपर सचिव, शिक्षाधिकारी, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आदि-आदि जितने भी शिक्षा से संबद्ध लोग थे, वे सब उसमें सम्मिलित हुए। पूज्य गुरुदेव ने कहा- 'वर्तमान की जो शिक्षा चल रही है, उस प्रणाली को आप गलत बता रहे हैं, और भी लोग इसे गलत बता रहे हैं। मैं ऐसा नहीं मानता। मैं मानता हूं कि शिक्षाप्रणाली गलत नहीं है, बल्कि अपर्याप्त है। अगर शिक्षा प्रणाली गलत है तो इतने अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक कैसे आ रहे हैं ? वर्तमान में जो शिक्षा प्रणाली चल रही है, उसी से तो आ रहे हैं। यह अपर्याप्त इस अर्थ में है कि इससे जो अपेक्षा की जा रही है, वह पूरी नहीं हो रही है। आप चाहते हैं चरित्र का विकास हो, नैतिकता, प्रामाणिकता, अनुशासन, ईमानदारी, दायित्वबोध, कर्तव्यबोध की भावना विद्यार्थी में जागे। इन्हें उत्पन्न करने वाले तत्त्व शिक्षा में ही नहीं हैं और आप अपेक्षा करते हैं ऐसे संस्कारों की। बीज बोया जा रहा है बबूल का और अपेक्षा आम के फल की की जा रही है। कैसे संभव होगा ? विद्यालयों का चुनाव . तत्कालीन शिक्षा सचिव के. के. भटनागर बोले-'आचार्यश्री ! आज पहली बार हमने यह बात सुनी है। आपने तो हमें एक नयी दृष्टि दे दी। आप इस अधूरेपन को भरने का मार्ग सुझाएं। हमने मार्ग सुझाया-सवसे पहले आप अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करें। हम उन्हें जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण देंगे फिर वे प्रशिक्षित अध्यापक अपने विद्यालय में विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देंगे। शिक्षामंत्रालय ने अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था कर दी। अध्यापकों के शिविर लगने शुरू हुए। एक शिविर में सैकड़ों जीवन विज्ञान के प्रयोग : २०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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