Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 223
________________ जीवन विज्ञान के प्रयोग समाधि की तीन बाधाएं हैं-आधि, व्याधि और उपाधि। आधि और व्याधि-ये हमारे बाह्य जगत् के कारक तत्त्व हैं। किन्तु उपाधि हमारे अन्तर्जगत् का तत्त्व है और वहीं से हमारा संचालन होता है। आज की समस्या यह है-धर्म का क्षेत्र हो, शिक्षा अथवा चिकित्सा का क्षेत्र, हम बाह्य जगत् तक पहुंचते हैं, उसके आगे जो भाव का जगत् है, वहां हम प्रवेश नहीं करते। वहां प्रवेश किये बिना समाधि नहीं मिलती, समस्या का समाधान नहीं होता। आज यह कहावत चरितार्थ हो रही है-मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। चिकित्सा के क्षेत्र में हास्पिटल बढ़ते जा रहे हैं, डॉक्टर बढ़ते जा रहे हैं, औषधियां बढ़ती जा रही हैं और बीमारियां भी बढ़ती ही जा रही हैं। कारण एक ही है कि मूल का स्पर्श नहीं हुआ है और जब तक मूल को नहीं छुआ जायेगा, यह सिलसिला चलता रहेगा। मूल बात को पकड़ें कि भाव का परिष्कार कैसे करें ? भाव परिष्कार की कल्पना जीवन विज्ञान की सारी कल्पना भाव-परिष्कार की कल्पना है। प्रेक्षाध्यान के शिविरों से हमें अनुभव मिला-आदमी बदलता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि आदमी बदलता नहीं है। राजस्थानी का प्रसिद्ध दोहा है जाकां पड़या सभाव, जासी जीव तूं। नीम न मीठो होय, सींचों गुड़-धीव स्यूं।।। जिसका जो स्वभाव हो गया, वह वदलेगा नहीं। नीम को चाहे गुड़ और जीवन विज्ञान के प्रयोग : २०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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