Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ जिनकी मस्तिष्कीय चेतना विकसित ही नहीं है, वे कैसे ठीक हो जाएंगे ? जिनकी कामना इतनी ज्यादा प्रबल है कि कोई दवा काम नहीं करती, वे कैसे ठीक हो जाएंगे ? किन्तु यदि आधे लोग भी ठीक होते हैं तो समाज के स्वस्थ होने की काफी संभावनाएं हैं। वीतरागी बनाने की बात न सोचें स्वस्थ्य का लक्षण यह नहीं है कि सब कुछ ठीक रहे। हमारा शरीर ऐसा है कि कहीं न कहीं, कुछ न कुछ गड़बड़ चलती ही रहती है। यदि पाचनतंत्र, उत्सर्जनतंत्र, श्वासतंत्र ठीक काम कर रहे हैं तो मानना चाहिए-व्यक्ति स्वस्थ है। वैसे ही समाज में कामना की प्रबलता से होने वाली हिंसा और आर्थिक अपराध अगर रुक जाते हैं, कम हो जाते हैं तो समझें-समाज स्वस्थ बन गया। समाज को वीतरागी बनाने की बात न सोचें । समाज को पूर्णतः अहिंसक बनाने की बात न सोचें । अहिंसक होने का मतलब सिर्फ इतना ही है कि सामाजिक व्यक्ति अनावश्यक हिंसा नहीं करता। इतना हो जाए तो काफी परिवर्तन आ सकता है। इस चेतना को जगाया जा सकता है और उसे जगाने की पद्धति है जीवन विज्ञान । उसके द्वारा मस्तिष्क को प्रशिक्षित किया जा सकता है, बदला जा सकता है। यह असंभव कल्पना नहीं है। सर्कस के जानवरों को देखें-वे कैसे मनुष्यों जैसे करतब कर लेते हैं। मनो वैज्ञानिकों ने पशुओं के मस्तिष्क पर इलेक्ट्रोड लगा कर परीक्षण किया। इलेक्ट्रोड के प्रभाव से आश्यचर्यजनक मस्तिष्कीय परिवर्तन देखे गए। एक शेर के सिर पर इलैक्ट्रोड लगाया तो वह इतना डर गया कि दुबक कर एक कोने में जा बैठा और खरगोश के सिर पर दूसरी तरह का इलेक्ट्रोड लगाया गया तो वह इतना आक्रामक हो गया कि बार-बार शेर पर झपटने लगा। यह मस्तिष्कीय परिवर्तन है-अभय के बिन्दु पर इलेक्ट्रोड लगाते ही चूहा भी बिल्ली की ओर आक्रामक होकर दौड़ पड़ता है। काफी प्रयोग इस प्रकार के हुए हैं, हो रहे हैं। रहस्यपूर्ण विधि जब भय के बिन्दु को जागृत किया जा सकता है, अभय के बिन्दु को जागृत किया जा सकता है तो क्या कामना के बिन्दु पर हम साधना के द्वारा नियंत्रण . स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प : २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244