Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 195
________________ अभ्यास से सधती है एकाग्रता बहुत कठिन है एकाग्रता। मन इतना दौड़ता है कि बड़े साधक के लिए भी कठिनाई है। एक विद्यार्थी के लिए यह बहुत बड़ी समस्या है। यदि विधिवत् प्रयोग किया जाये तो एकाग्रता का विकास संभव है। अर्जुन ने योगिराज कृष्ण से पूछा-मन बहुत चंचल है। उसका निग्रह करना वायु को पकड़ने जैसा है। कृष्ण ने उत्तर दिया-अर्जुन ! उसको पकड़ने के दो उपाय हैं-अभ्यास और वैराग्य। यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि हर विद्यार्थी वैरागी होगा, विरक्त होगा। किन्तु अभ्यास सर्वसाधारण के लिए हो सकता है। अभ्यास किया जाये तो मन को पकड़ा जा सकता है, मन की एकाग्रता साधी जा सकती है। जीवन विज्ञान में इनके प्रयोग निर्दिष्ट हैं-अभ्यास के द्वारा मन की चंचलता को कैसे कम किया जाये और कैसे एकाग्रता को साधा जाये ? एक युवक बम्बई यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था। वह यूनिवर्सिटी छोड़ काम-धंधे में लग गया। कुछ वर्ष बाद मन में आया-मुझे उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। उसने पुनः यूनिवर्सिटी में एशोसियेशन सेक्रेटरी का कोर्स ले लिया। उसने सोचा-इतने वर्ष अध्ययन छोड़ चुका हूं। इस क्षेत्र में फिर आ रहा हूं तो इससे पहले मुझे प्रेक्षाध्यान का एक शिविर कर लेना चाहिए। वह शिविर में आया, एकाग्रता की अच्छी साधना की। उस एकाग्रता के अभ्यास का परिणाम यह रहा-बम्बई यूनिवर्सिटी में वह प्रथम स्थान पर रहा । वह अनुभव करता है-अगर मेरी ध्यान की साधना नहीं होती, एकाग्रता का अभ्यास नहीं होता तो यह कभी संभव नहीं था कि बम्बई यूनिवर्सिटी में मैं प्रथम स्थान पर रहता। एकाग्रता और आशीर्वाद ने मुझे सफल बनाया। स्मृति का विकास चौथा तत्त्व है स्मृति का विकास। कार्यक्षेत्र में वह व्यक्ति सफल होता है, जिसकी स्मृत्ति अच्छी होती है। स्मृति कमजोर है तो सफल नहीं हो सकता। स्मृति प्रखर होनी चाहिए। जो व्यक्ति मन के रहस्यों को समझ लेता है, उसकी एकाग्रता भी अच्छी होती हैं, स्मृति भी अच्छी रहती है। आश्चर्य होता है-कुछ व्यक्तियों की स्मृति अस्सी वर्ष की अवस्था में इतनी प्रबल है, जितनी एक युवक की भी नहीं है। पूज्य गुरुदेव बहुत बार ऐसी घटनाओं का उल्लेख कार्यक्षेत्रीय कौशल : १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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