Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 217
________________ अपराध क्यों कामना का चक्र भीतर से चलता है। एक उद्योगपति से मैंने पूछा-'तुम्हारे पास इतना धन था, फिर तुमने इतनी अप्रामाणिकता और आर्थिक अपराध क्यों किये ? उसने कहा-'महाराज, अब आपसे क्या छिपाऊं ? मेरे मन में यह कामना थी कि मुझे हिन्दुस्तान का प्रथम नम्बर का उद्योगपति बनना है, ए-वन बनना है। इस कामना ने मुझसे सारे आचरण करवा लिये। पाप को कौन कराता है ? गीता में इस बात को ठीक पकड़ा गया-यह काम करवा रहा है। जब तक काम पर नियंत्रण नहीं होगा, अर्थ पर नियंत्रण नहीं हो पायेगा। आज यही हो रहा है-हम अर्थ की व्यवस्था को तो संतुलित करना चाहते हैं किन्तु काम पर ध्यान दे नहीं दे रहे हैं। इसीलिए समाजवाद और साम्यवाद की कल्पना सफल नहीं हुई। यही वह बिन्दु है, जहां अध्यात्म को जोड़ना चाहिए। काम की व्यवस्था को ठीक किये बिना समाज और अर्थ की व्यवस्था ठीक हो सकती है, इसका सपना भी नहीं देखना चाहिए। हर व्यक्ति के मन में काम प्रबल है। अर्थ को नियंत्रित करेंगे तो इतना संभव है-व्यक्ति कठोर दण्ड, कारावास के डर से सामने कुछ नहीं करेगा, किन्तु भीतर में तो अपराध का चक्र चलेगा और कामना उसको प्रेरित करती रहेगी। सबसे बड़ी जो मौलिक प्रेरणा है, वह है काम । काम के द्वारा ही सारा चक्र संचालित हो रहा है। स्वस्थ समाज वह है, जिसने इस सचाई को समझा है और काम को नियंत्रित करने का प्रबन्ध किया है। स्वस्थ समाज के लिए इस बिन्दु पर अध्यात्मवाद और समाजवाद दोनों जुड़ जाते हैं। मार्क्स और एंजिल्स ने अपने अंतिम वर्षों में कहा था-यदि यह अध्यात्म का सूत्र पहली अवस्था में हमें प्राप्त होता तो हमारी संपूर्ण दार्शनिक कल्पना दूसरे प्रकार की होती। किन्तु अब हमारी अवस्था हो गई और हम उसे सुधारने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने इस सच्चाई का खुल कर प्रतिपादन किया-अध्यात्म के बिना, चरित्र के बिना कोरी अर्थव्यवस्था की बात चल नहीं पायेगी। अध्यात्म का अर्थ है कामना पर नियंत्रण करना। इसके साथ अर्थ की व्यवस्था को ठीक करना चाहें तो काफी सुविधा हो जायेगी। स्वस्थ समाज के लिए प्रथम स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प : १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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