Book Title: Naya Manav Naya Vishwa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 211
________________ हो रहा है कि कैसे विद्यार्थी के मस्तिष्क का संतुलित विकास किया जाये ? मस्तिष्क के वे सारे प्रकोष्ठ जागृत हों, जो जीवन के साथ जुड़े हुए हैं। नाड़ीतंत्रीय असंतुलन जो पैदा होता है, उसका कैसे बैलेंस किया जाये ? इन सारी आध्यात्मिक, यौगिक और वैज्ञानिक प्रविधियों का सम्मिश्रण कर एक पद्धति का निर्धारण हुआ है और उसको हम शिक्षा की पूरक पद्धति के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। पूरक पद्धति दूध का अपना काम है। यह नहीं कहा जा सकता-चीनी दूध का काम करेगी। बहुत लोग फीका दूध नहीं पी सकते, शायद स्वाद भी उन्हें नहीं आता होगा। चीनी मिला कर उसमें मिठास पैदा करते हैं। अच्छे भोजन के लिए तेल, मसाले और नमक का प्रयोग होता है। ये हमारे भोजन के पूरक तत्त्व हैं। हिन्दुस्तान में इन पूरक तत्त्वों का बहुत महत्त्व किया गया और बड़े वैज्ञानिक ढंग से इन्हें खोजा गया। पाचनतंत्र के लिए हल्दी जरूरी है तो भोजन में हल्दी का प्रयोग शामिल कर लिया। इसी प्रकार जीरा, सोंठ, काली मिर्च आदि को शामिल किया गया। हम जीवन विज्ञान को इसी रूप में देखते हैं। अगर जीने की कला, जीवन के रहस्य और जीवन के सूत्र शिक्षा के साथ नहीं जुड़ते हैं तो नमक के बिना भोजन वाली बात होगी। इसीलिए आज इस नये आयाम पर काफी चिन्तन जरूरी है। इसे समझें, इस प्रकार नियोजित करें, जिससे विद्यार्थी पर भार भी न पड़े। सोचें स्वार्थ से परे गांधीजी ने इस बात पर बल दिया था-पाठ्यपुस्तकों से मुक्त शिक्षा होनी चाहिए पर इसे कोई भी आज सुनने-समझने को तैयार नहीं है और सुने भी कैसे ? अगर पाठ्यपुस्तकविहीन शिक्षा हो जाये तो करोड़ों-अरबों का धंधा ही सामप्त हो जायेगा। शिक्षा के क्षेत्र में बड़े धंधे चल रहे हैं। ऐसे धंधेबाज कब चाहेंगे कि ऐसी शिक्षा हो ? न जाने कितने लोगों का स्वार्थ इसके साथ जुड़ा हुआ है। वे कभी पसंद नहीं करेंगे। यह बहुत आगे की बात है किन्तु जो चल रहा है, उसमें कुछ छोड़ दें, कुछ जोड़ दें तो शायद एक नया आयाम, शिक्षा का नया आयाम : १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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