Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ऐसे महान साहित्यकार का जीवन परिचय हमें पूरा नहीं मिलता किन्तु इस ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा के साथ-साथ अपना भी अल्प परिचय दिया है वह इस प्रकार है। प्रश्नवाहनकुल की मध्यम शाखा में हर्षपुरीयगच्छ में जयसिंह मूरि नाम के प्रभावशाली आचार्य हो गये। उनके शिष्य का नाम अभयदेव सूरि था । उनका जीवन अत्यन्त बैराग्यपूर्ण था। उनका जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान था । उन्होंने हजारों क्षत्रियों को जैन बनाकर सैकड़ों जैनगोत्रों की स्थापना की थी। उन गोत्रों में पगारिया, कोठारी, गोलीया, सिंधी, गिरिया, बंब, गंग, गहेलडा, खीमसरा आदि मुख्य है । ये गोत्र आज भी ओसवाल समाज में प्रचलित हैं * । अपने समय के कई राजाओं को भी उन्होंने जैनधर्म के अनुकूल बनाया था । इन्हीं राजाओं के द्वारा अभयदेव सूरि को अपने जैनधर्म-प्रचार कार्य में अनेक विध सहयोग प्राप्त हुआ । गुर्जरेश्वर कर्ण देव ने उनको मल्लधारी की उपाधि से विभूषित किया था । अजमेर के महाराजा जयसिंह उनके परम भक्त थे । उनके उपदेश से उन्होंने अपने सम्पूर्ण राज्य में अष्टमी, चतुर्दशी और शुक्ला पंचमी के दिन 'अमारि' की घोषणा करवाई थी । भुवनपाल राजा ने जैन मन्दिर के पुजारियों से कर वसूल करना छोड़ दिया था। शाकंभरी के महाराजा पृथ्वीराज ने आचार्य श्री की प्रेरणा से रणस्तंभपुर नगर के जिन मन्दिर पर स्वर्ण का कलश चढ़ाया था । सौराष्ट्र के राजा खंगार उनका बहुत सम्मान करते थे । इतने सन्माननीय होते हए भी ये बड़े त्यागी तपस्वी एवं अपरिग्रही सन्त थे । केवल एक ही चोलपट्ट और एक ही चादर रखते थे। दिन में एक बार भोजन करते थे और सदैव तृतीय प्रहर में ही वे स्वयं गोचरी (भीक्षा) के लिD निकलते थे। आमणश्रेष्ठी जैसे अनेक प्रमुख श्रावक उनके दर्शन किये बिना अन्न जल भी नहीं लेते थे । ये उच्चकोटि के वक्ता एवं विद्वान थे । एक बार उन्हें किसी वैमानिक देव ने परलोक गमन का समय बताया । अपनी आयु का अन्त समय जानकर उन्होंने स्वस्थ होते हए भी आहार की मात्रा घटा दी । जीवन के अन्तिम समय में उन्होंने अजमेर में ४७ दिन का अनशन किया । गर्जर नरेश सिद्धराज ने जब उनके अनशन का समाचार सुना तो वह पैदल ही उनके दर्शनार्थ उनके निवास स्थान पर गया और उनके चरण की धुली मस्तक पर चढ़ाकर अपने आपको कृतार्थ किया । उनके अशन की बात सुनकर विद्वान आचार्य शालिभद्रसरि जो अपने समय के प्रख्यात आचार्य थे उनके पास आये और बालक की तरह जोर जोर से रुदन करने लगे । आचार्यश्री ने उन्हें खूब सान्त्वना दी । अन्त में अत्यन्त समाधिपूर्वक उन्होंने देह छोड़ दिया । उनके देह की अन्तिम यात्रा विशाल जनसमूह के साथ प्रातः सूर्योदय से प्रारंभ हुई और शाम को अग्निदाह के स्थल पर पहुंची। मंत्रीगण सहित अजमेर के महाराजा जयसिंह अग्निदाह के स्थल तक पैदल ही पहुंचाने आये । देह-संस्कार के बाद मल्लधारी अभयदेव सरि के देह की राख को रोगनिवारक समझकर लोग अपने अपने घर ले गये । जब राख नहीं बची तो लोगों ने उस स्थान की मिट्टी को पवित्र मानकर घर ले गये । उस स्थल पर एक बड़ा-सा गड्ढा हो गया । वि. सं. ११४२ में आचार्य अभयदेव सूरि अन्तरिक्षजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा में विद्यमान थे । वे वि. सं. ११६८ में स्वर्गवासी हए ऐसा माना जाता है । उन्हीं के पट्टधर शिष्य आचार्य हेमचन्द्रसूरि थे । ये भी अपने गुरु की तरह ही ज्ञान के सागर कुशल वक्ता एवं बहमखी प्रतिभा के धनी थे । उनकी वनि मेघ की तरह गम्भीर थी। उनके व्याख्यान सुनकर शाकंभरी के राजा पथ्वीराज ने तथा अन्य हजारों क्षत्रियों ने जैनधर्म स्वीकार किया था । ये केवल व्याख्याता ही नहीं थे किन्तु उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे । इन्होंने आवश्यकटिप्पण, शतकविवरण, अनयोगदारवृत्ति, उपदेशमाला मूत्र, उपदेशमाला वृत्ति, जीवसमास विवरण, भवभावना मुत्र एवं वृत्ति, नन्दी टिप्पण एवं विशेषावश्यक भाष्य वृत्ति जैसे ग्रन्थों का निर्माण कर साहित्य कोष की अभिवृद्धि की । * जैन परम्परा का इतिहास पृ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 376