Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur View full book textPage 2
________________ प्रस्तावना जैन अन्यागार हिन्दी साहित्य के विशाल महार है। में ही पाण्डुलिपियों की खोज अभी प्रात्री मी नहीं हो सकी है। राजस्थान के प्रमुख शास्त्र भण्डारों की यद्यपि पांच भागों में सूची प्रकाशित हो चुकी है लेकिन अभी तक राजस्थान में भी कितने ही ऐसे भष्टार हैं जिन्हें कभी देखा नहीं जा सका। ऐसे ही भण्डारों में एक टोंक जिले में स्थित डिग्गी कस्बे के दिगम्बर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार है जिसको देखने का मुझे गत वर्ष अगस्त५३ में सौभाग्य मिला और उसी समय कितनी ही प्रचचित कृतियों की प्राप्ति हुई । ऐसी प्रचित कृतियों में मुनि सभाचन्द्र विरचित हिन्दी पद्म पुराण का नाम विशेषत: उल्लेखनीय है । जैन साहित्य में राम के जीवन पर सभी राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक भाषाओं में विशाल साहित्य मिलता है। वस्तुतः राम जिस प्रकार महाकवि वाल्मीकि एवं तुलसीदास के पाराष्य रहे हैं उसी प्रकार के विमलसूरि, स्वयंमू, रविषेणाचार्य एवं पपवन्त जैसे महाकचियों के काश्यों के नायफ है । राम ६३ शलाका महाष रूषों में + बैं बलभद्र हैं जी उसी भव से मोक्ष जाते हैं। रामकथा का उद्भव एवं विकास : बेदों में रामकथा का कोई महत्वपूर्ण स्रोत प्रथदा उल्लेख नहीं मिलता नहीं मिलता | ऋग्वेद में इक्ष्वाकु (१०६०।४) एवं दशरथ (१।१२६।४) नामों का उल्लेख अवश्य मिलता है लेकिन वे रामकथा के अंगभूत नहीं है । इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण (१०।६।१।२) तैत्तरीय साह्मए (३।१०१६) जमनीय ब्राह्मणा (१।१६।२०६३) छन्दोग्योपनिषद (५.११॥४) वृहदारण्यकोपनिषद (३.११) में जनक का जो उल्लेख मिलता है वह रामकथा के उरस फूटते भर मालूम पड़ते है । संस्कृत भाषा में वाल्मीकि रामायण का जो वर्तमान रुप उपलब्ध है वह सभी . उपलब्ध राम कथा काव्यों में प्राचीनतम है । लेकिन विदेशी विद्वान् डा० बेबर के मत में राम कथा का मूल रूप दधारण जातक में सुरक्षित है। इसी तरह डा० सेन के १. ए. वर--मान दि रामायण पृष्ठ ११Page Navigation
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