Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 01 Author(s): Badriprasad Sakariya Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur View full book textPage 5
________________ सञ्चालकीय वक्तव्य . राजस्थानी भाषामें लिखित गद्य-साहित्यके अन्तर्गत अनेक ख्यातें प्राप्त होती हैं, जिनमें वांकीदासरी ख्यात, मुंहता नैणसीरी ख्यात, राठोडारी ख्यात, दयालदासरी ख्यात, सीसोदियांरी ख्यात, कछवाहारी ख्यात, जोधपुररी ख्यात, महाराजा मानसिंघजीरी ख्यात और चहुवांण, सोनगरांरी ख्यात विशेष प्रसिद्ध हैं। इन ख्यातोंका साहित्यिक और ऐतिहासिक दोनों ही प्रकारसे विशेष महत्त्व है, किन्तु इनमेंसे अधिकांश ख्यातें अब तक अप्रकाशित हैं तथा साहित्य-क्षेत्रमें थोड़े ही व्यक्तियोंको इनके विषयमें परिचय प्राप्त है। प्रस्तुत ख्यात-साहित्यका निर्माण मुख्यतः हमारे पूर्वजोंमें जागृत हुए ऐतिहासिक गौरवाभिमानके कारण हया है और इस कार्य के लिये हमारे ख्यातलेखकोंको विभिन्न-विषयक सामग्री खोजने और उसको विधिवत् सङ्कलित करने में पर्याप्त परिश्रम करना पड़ा है । हमें भारतीय साहित्यिक और ऐतिहासिक इतिवृत्त लिखनेमें ऐसी ख्यातोंसे विशेष सहायता मिल सकती है किन्तु अद्यावधि इनका उपयोग नाम मात्रके लिये ही हुआ है । इसका एक कारण इन ख्यातोंका अप्रकाशित रहना भी है। . राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके अन्तर्गत "राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाका" प्रकाशन प्रारम्भ करनेके साथ ही हमने निश्चय किया था कि महत्वपूर्ण ख्यातें शीघ्र ही सुसम्पादित रूपमें प्रकाशित करदी जावें। तदनुसार "वांकीदासरी ख्यात" और "मुंहता नैणसीरी ख्यात" प्रेसमें दी गईं। "वांकीदासरी ख्यात" तो हम पहले ही साहित्य-जगत्में प्रस्तुत कर चुके हैं और चिर प्रतिक्षित "नैणसीरी ख्यात" प्रथम भाग को अब प्रकाशित करनेका अवसर प्राप्त हो रहा है। ___"मुंहता नैणसीरी ख्यात"का हिन्दी अनुवाद कुछ वर्षों पहले काशीकी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हुआ है किन्तु यह अनुवाद अविकल हो ऐसा ज्ञात नहीं होता । इस अनुवादमें अनेक घटनाएँ विपर्यस्त रूपमें लिखी गई हैं जिससे ग्रन्थकी वास्तविकताका अपेक्षित परिचय नहीं मिल पाता। "नैणसीरी ख्यात"की राजस्थानी भाषा-शैली हमारे साहित्यमें विशेष महत्त्वपूर्ण है और गद्यकी यह एक परिमार्जित एवं प्रौढ़ कृति है । किसी भी साहित्यिक कृतिका रसास्वाद मूल पारके विना नहीं प्राप्त किया जाPage Navigation
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