Book Title: Mrutyunjaya Author(s): Birendrakumar Bhattacharya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ भिभिराम की पत्नी के पास अकसर आया करती। उनके लिए कपास की पूनियाँ लेकर । इतनी चतुर थीं कताई में वे कि दस-बारह तो मुंह का पान पूरा होते-होते कात लिया करतीं। कभी-कभी यह षोडशी रात को भी यहीं रह जाती। साथ में होती बूढ़ी माँ। कभी और-और चीजें भी खाँची में लाती, और जाकर बाजार में बेचा करती। बहुत बार कौनी के दाने भी लाती जो गरम पानी में भिगोकर खाते अच्छे लगते । बीच-बीच में लाख के पेड़ का गोंद भी ले आती: डेलियों के रूप में। बड़ी गौरांगी थी वह । सुघड़ देह, उभरा हुआ वक्ष, सुन्दर सुडौल पिण्डलियाँ ! असमी तरुणियों में तो वैसी देखने को न मिलें। नाम था डिमि; माँ का कादम । डिमि के गले में 'लेक' पड़ी होती, कानों में 'काडेङ सिन्रों, कलाइयों में 'रई', वक्ष पर 'जिन्सो'; और कटिभाग पर लपेटे रहती रंगीन 'पिनि'। धनपुर ने उसी से पूछ-पूछकर ये सब नाम याद किये थे । बूढ़ी माँ पहने रहतीं केवल 'पिनि' और 'जिन्सो'। बूढ़ी कादम और डिमि कभी-कभी भिभिराम के यहां के लिए अदरक-मिर्च और सन्तरे आदि भी लाया करतीं। उस दिन दोनों माँ-बेटी यही सब चीजें लेकर आयी थीं। रात को वहीं टिकीं। अकौड़ा लगा हुआ था। सब आग सेंकते बैठे थे। तभी कादम ने 'हरत कुंवर' की कहानी सुनायी थी। अपूर्व थी कहानी। कब आधी रात बीत आयी, किसी को भान न हुआ। भिभिराम की पत्नी तो जंभाई पर जंभाई लेती खम्भे से टिकी बैठी ही रही । और डिमि ! वह माँ से सटी बैठी थी, मगर आँखें बार-बार धनपुर की ओर जा रहतीं। कहानी में हरत कुंवर का सूर्यदेवता की छोटी बेटी के साथ ब्याह हुआ था। धनपुर तो इतना विभोर हुआ सुनकर कि कई दिनों सब कुछ भूला रहा । उस दिन गणित की क्लास में भी डिमि सूर्यदेवता की बेटी बन उठी थी और वह स्वयं बुन चला था सपने आकाश में उसके साथ उड़ने के। ___ एक दिन तो वह स्कूल न जा डिमि के पीछे-पीछे कपिली तक गया। कादम ने देखा तो हँसी-हंसी में पूछा भी : "अरे, तुम साथ-साथ ही चले आ रहे हो बेटा !" धनपुर तो एक बार को ऐसा हो रहा कि किसी तरह वहीं धरती में छिप जाये। उधर डिमि के होंठों पर एक सकुची-सकुची मुसकराहट छिटक आयी। नदी तट आ गया था। पास ही घास से ढका एक टीला था। कादम ने प्यार से धनपुर को पुकारा और बैठते हुए बोली : "आ बेटा, पान खा ले । डिमि, एक भुट्टा दे इसे।" डिमि ने खाँची में से निकालकर आगे को बढ़ाया खूब भुना हुआ भुट्टा । नाक में सोंधी-सोंधी गन्ध गयी तो धनपुर ने आँखें उठाकर डिमि की ओर देखा। 4 / मृत्युंजयPage Navigation
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