Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ किसी की भी हत्या कर सकता । धनपुर ने भिभिराम की उस दृष्टि को लक्ष्य किया । बोला : "तुम ठीक ही कह रहे थे भिभिराम भइया, कि हम लोग बर्रों की तरह हैं । बरों का अस्त्र डंक होता है । पर मैं तो सच में क़साई हूँ, कसाई ।" मुट्ठियों के रूप में दोनों हाथों की उँगलियों को भींचकर उन्हें देखता हुआ आगे बोला, "भाभी तो मेरी इन उँगलियों पर आँख पड़ते ही भय के मारे मुँह को दूसरी ओर कर लेती हैं।" दो क्षण कहीं खोये रहकर कहा, "भगवान ने ये उँगलियाँ मुझे क़लम " पकड़ने के लिए नहीं दीं, ये हथौड़ा और दाव चलाने के लिए हैं ।" भिभिराम गम्भीर हो आया : 1 "जानता हूँ धनपुर । तुम्हारी भाभी तो इसके प्रतिकार के लिए उपाय तक कराने गयी थी । गोसाईं जी को तुम्हारी जन्म कुण्डली दिखायी । उन्होंने दुष्टग्रह बहुत प्रबल बताये; मारक योग तक का संकेत किया। कुछ पूजा आदि भी सुझायी थी । क्या हुआ उसके बाद, मुझे नहीं पता !" "होना क्या था । उसके बाद तो हाथ में रिच सँभाल ही लिया ।” भिभिराम चुप हो रहा । उसे कामपुर हाईस्कूल में हुए स्ट्राइक का दिन याद हो आया । उस दिन धनपुर ने ही झण्डा फहराया था । उस दिन ही उसे शान्ति सेना में भरती करके 'करेंगे या मरेंगे' की शपथ दिलायी थी । कामपुर के पास ही शान्ति सेना का शिविर लगा हुआ था । मगर शिविर में बीड़ी-सिगरेट पीना मना था, इसलिए धनपुर वहाँ जाना ही बचा गया । भिभिराम को बहुत बुरा लगा । पर करता क्या ? नेता लोग गिरफ़्तार किये जा चुके थे । बचे थे इनेगिने कार्यकर्ता; इन्हें तत्काल आगे का कार्यक्रम देना था । कार्यक्रम : मिलिटरी की सप्लाई काट देना, रेल पुल आदि नष्ट करके यातायात भंग कर देना । समूचा देश उन दिनों मिलिटरी की एक विराट छावनी बना हुआ था । जापानी सेना चिन्दुइन नदी के उस पार पहुँच आयी थी। ब्रिटिश अमेरिकी, चीनी और ऑस्ट्रेलियाई सेनाएं सारे में फैली थीं। ऊपर से यमदूतों की तरह दयामायाहीन पुलिस और सी० आई० डी० हाथ धोकर देशसेवकों के पीछे पड़ी हुई थी । कमी देशद्रोहियों की भी नहीं थी। शहर तो शहर, गाँवों तक में इन दुष्टों के दल खड़े हो गये थे । कम्युनिस्ट लोग अलग अपनी-सी करने पर उतारू थे । युद्ध का विरोध न करके, ये उसे फ़ासिस्ट - विरोधी संग्राम बताकर अपना सहयोग दे रहे थे। इतना ही नहीं, देशसेवकों के हर काम को ये ग़लत ठहरा रहे थे । यह अवस्था होते भी कार्यकर्ता लोगों ने न साहस छोड़ा न मन में निराशा आने दी। कार्यक्रम को चलाने के लिए अच्छे और विश्वस्त व्यक्तियों को खोजखोजकर अपने साथ ले रहे थे । कामपुर में उनकी दृष्टि धनपुर पर पड़ी । 2 / मृत्युंजय

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