Book Title: Mrutyunjaya Author(s): Birendrakumar Bhattacharya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 4
________________ मुंह से निकाले बिना प्राण होम कर उसे सफल बनाने पर । घटना के 26 वर्ष बाद यह उपन्यास मैंने लिखा । उस समय की वह आग ठण्डी पड़ चुकी थी; पर उसकी आत्मा, उसका यथार्थ, अब भी सांसें ले रहे थे । उपन्यास में विद्रोह-सिक्त जनता के मानस का, उसकी विभिन्न ऊहापोहों का चित्रण किया गया है। सबसे बड़ी समस्या उस भोले जनसमाज के आगे यह थी कि गांधीजी के अहिंसावादी मार्ग से हटकर हिंसा की नीति को कैसे अपनायें; और सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि इतनी-इतनी हिंसा और रक्तपात के बाद का मानव क्या यथार्थ मानव होगा? वह प्रश्न शायद आज भी ज्यों का त्यों जहाँ का तहाँ खड़ा है। भारतीय ज्ञानपीठ के प्रति मैं आभारी हूँ कि यह कृति हिन्दी पाठकों के सम्मुख पहुंच रही है । इसका हिन्दी रूपान्तर गुवाहाटी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण प्रसाद सिंह 'मागध' ने किया है । मैं उनका आभारी हूं, और दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी प्राध्यापक डॉ. रणजीत साहा का भी जिनका सक्रिय सहयोग इसे मिला। गुवाहाटी, 9 अक्तुबर 1980 वीन कुमार मचाPage Navigation
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