Book Title: Manibhadrakavyam
Author(s): Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 124
________________ तव समक्षमणुक्षमताबलाद् यदपि वच्मि तदस्ति समर्पणम् । त्वयि कुतर्कमुमुक्षुतयाऽऽश्रितः कथमहंयुमहं युनजानि तम् ॥१९॥ गुणिजनोऽर्हति नार्हति पूजनां जल-वनस्पति-पुष्पविराधिकाम् । अवधमार्गमतेरिह जीवितव्रजहतिं जहति श्रमणा अपि ॥२०॥ सततजीवविबाधनमर्चने रसवतीरचनेष्विव सम्भवेत् । इति सदागमबोधपुरस्कृते भवति तीव्रतरा व्रतरागिता ॥२१॥ मम मनो यमपञ्चकपालनैरभयदानमनुत्तरमाधृते । भगवदर्चनतो विरतेऽधुना विगतसङ्गर ! सङ्गरसि त्वयि ॥२२॥ मम वचो कलयन्नकलं भवान् ध्रुवमभूद् विषकण्ठसहोदरः । मयि करोतु कृपाकमलालय ! हृदयदेव ! यदेव तवेप्सितम् ॥२३।। इति वदत्यमुमाह गुरुः शृणु न कथया कथयानि यथेच्छया । यदपि वच्मि तदस्ति निदेशितं भगवताऽङ्गवता निजपर्षदि ॥२४॥ १०२ श्रीमाणिभद्रमहाकाव्यम् ६

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