Book Title: Malarohan
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 3
________________ प्रकाशकीय.... म पामरों को अपनी परमात्म शक्ति का अनुभवगम्य बोध कराकर "तू स्वयं भगवान संत पूज्य गुरूदेव श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज धन्य-धन्य हैं, परम कृपालु हैं जो कि शुद्ध अध्यात्म मार्ग के प्रेरणास्रोत बनकर एक मात्र अपने चैतन्य प्रभु का आश्रय लेकर इस असार संसार से स्वयं तरे व हम सभी को तरने का मार्ग बताया। हमारा महान सौभाग्य है कि हमने ऐसे मिथ्या आडम्बर एवं बाह्य क्रियाकाण्डों से रहित पूज्य गुरूदेव के शुद्ध आम्नाय (तारण पंथ) में जन्म लिया है। श्री गुरू महाराज के भावलिंगी साधुपने एवं पूर्ण आध्यात्मिक संत होने का इतना प्रमाण ही काफी है कि उन्होंने अपनी हर बात में "कथितं जिनेन्द्रे : " कहकर श्री जिनेन्द्र भगवन्तों की देशना को स्वीकार किया है। श्री गुरू महाराज के अनमोल चौदह ग्रंथों में से विचारमत का यह प्रथम ग्रंथ श्री मालारोहण जी ग्रंथराज मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी "सम्यक्दर्शन' को प्रतिपादित करने वाला है। अपने इस लघु ग्रंथ में आचार्य प्रवर ने कुल ३२ गाथाओं में मानो गागर में सागर भर दिया है जो मुमुक्षुजनों के लिए अपने शुद्धात्म तत्व की सत् श्रद्धा-अनुभूतियुत प्रतीति सहित मुक्तिगमन हेतु सहकारी है। सम्यक्दर्शन तो कोई अपूर्व और अलौकिक चीज है, जो हमेशा ही आनन्द देने वाला है किन्तु अनादि काल से इन शरीरादि पर संयोगों में मैं और मेरेपने की मान्यता होने के कारण ही मिथ्यादर्शन सहित अनन्त जन्म-मरण का चक्र चल रहा है जिससे निरन्तर दुःख ही दुःख प्राप्त हो रहा है। ये शरीरादि पर पदार्थों एवं पुण्य-पाप आदि सबका लक्ष्य छोड़कर एकमात्र भगवान ज्ञायक के श्रद्धान रूप होना, परिणमना वह सम्यक्दर्शन है। जो ज्ञायक की अनुभूति का परिणाम होने पर अतीन्द्रिय आनन्द का स्वाद आये और आत्मा आनन्द का धाम प्रभु ऐसा है, ऐसी प्रतीति का भाव उत्पन्न होना, वह सम्यक्दर्शन है। इस बात को समझना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यह धर्म की पहली सीढ़ी है, प्रथम सोपान है; नहीं तो इसे समझे बिना ज्ञान भी सच्चा नहीं और चारित्र भी सच्चा नहीं। सम्यक्दर्शन बिना तो सारे व्रत, तप, शील, संयम इत्यादि अंक बिना की बिंदी जैसे हैं। यह मनुष्य भव हमें अपने अभेद, ज्ञानानन्द स्वभावी भगवान आत्मा की अनुभूति कर (सम्यक् दर्शन प्राप्त कर) नर से नारायण बनने को मिला है, यदि हम ऐसा न कर पाये तो वही परिणाम होगा, जैसे- अनमोल रत्न को सागर में फेंक दें और पुनः प्राप्त करने का प्रयास करें, जो मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हम तो और भी सौभाग्यशाली हैं कि इस पंचमकाल में जहाँ चारों ओर भौतिकता के चकाचौंध की आग लगी है वहाँ श्री गुरू महाराज की कल्याणकारी वाणी सतत् रूप से आत्म साधना के सतत् प्रहरी, दशम प्रतिमाधारी श्री संघ के आत्मनिष्ठ साधक पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज के मुखारविन्द से सुनने, समझने एवं आत्मसात् करने के लिए प्राप्त हो रही है। पूज्य श्री की अनुपम कृपा है कि उनने अपनी मौन आत्मसाधना के तहत् श्री मालारोहण जी ग्रंथाधिराज की अध्यात्म दर्शन टीका अत्यन्त सरल, सहज एवं मार्मिक शब्दों में की है, जिसके प्रकाशन का महान सौभाग्य ब्रह्मानन्द आश्रम, पिपरिया को प्राप्त हुआ है। जिसका सुन्दर सम्पादन, भारत के कोने-कोने में सर्वधर्म समभाव के प्रणेता तथा श्री गुरू महाराज की पावन वाणी को जन-जन में पहुंचाने वाले "अध्यात्म रत्न" बाल. ब्र. 3 पू. श्री बसन्त जी महाराज ने किया है। जिनकी धर्म सभाओं में सभी धर्मों के लोग जाति-पांति का भेदभाव भूलकर ज्ञानगंगा में अवगाहन कर श्री गुरूदेव की वाणी को आत्मसात् करते हैं। " श्री जिन तारण स्वामी जी एवं माँ जिनवाणी के प्रचार-प्रसार व साहित्य प्रकाशन हेतु ब्रह्मानन्द आश्रम पिपरिया सदैव कटिबद्ध है। इसी कटिबद्धता अनुसार आज सारे देश में "तारण तरण श्री संघ" के समस्त साधक, त्यागी, पूज्यजन, ब्रह्मचारिणी विदुषी बहिनें, एवं विद्वत्जन श्री गुरू महाराज और जिन धर्म की महती प्रभावना कर रहे हैं। साहित्य प्रकाशन की श्रृंखला में ब्रह्मानन्द आश्रम से अभी तक १. अध्यात्म उद्यान की सुरभित कलियाँ, २ . तारण गुरु की वाणी अमोलक, ३. जीवन जीने के सूत्र ४. ज्ञान दीपिका (भाग १-२-३ ) ५. अध्यात्म अमृत ६. अध्यात्म प्रकाश (संस्कार शिविर स्मारिका ) ७. श्री मालारोहण टीका ८. अध्यात्म अमृत (संशोधित संस्करण) ९. श्री कमलबत्तीसी टीका १०. अध्यात्म भावना, यह दस पुष्प प्रकाशित हुए हैं तथा इस वर्ष होली के रंग बिरंगे पावन पर्व पर पूज्य श्री के पिपरिया शुभागमन पर उनके मंगलमय आशीर्वाद से यह "सातवाँ पुष्प' श्री मालारोहण जी अध्यात्म दर्शन टीका प्रकाशित हुआ तथा शीघ्र ही सभी प्रतियाँ समाप्त हो जाने से इस ग्रंथ का यह द्वितीय संस्करण पूज्यश्री के वर्षावास के अवसर पर प्रकाशित होकर आपके कर कमलों में है, यह हमारे महान पुण्य की बात है। इसके पूर्व ब्रह्मानन्द आश्रम के मार्गदर्शन में पूज्य श्री द्वारा रचित श्री पण्डित पूजा जी ग्रंथ की टीका का प्रकाशन श्री सेठ प्यारेलाल निर्मल कुमार समैया पिपरिया एवं स्व. महात्मा गोकुलचन्द तारण साहित्य प्रकाशन समिति जबलपुर द्वारा दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं, जो समाज को अनमोल देन सिद्ध हुई है। आश्रम के मार्गदर्शन में ही "अध्यात्म किरण" का द्वितीय प्रकाशन पं. श्री इन्द्रकुमार जी, पं. श्री भरत कुमार जी जैन परासिया द्वारा अपने पिताश्री स्व. ब्र. दयानन्द जी की पुण्यस्मृति में हुआ है जिसकी समाज में काफी मांग है, भविष्य में कई सुन्दर ग्रंथों का प्रकाशन होना है, जो समय आने पर पूर्ण होगा। ब्रह्मानन्द आश्रम से संचालित योजनाओं में श्री संघ के साधकों द्वारा अपने भ्रमण के दौरान जगह-जगह पाठशालाओं का शुभारम्भ, ग्रंथालय की स्थापना, पण्डित वर्ग का गठन, युवा एवं महिला वर्ग का गठन, (अष्टमी - चतुर्दशी को) मन्दिर विधि की शुरूआत का कार्य चल रहा है। सामाजिक संगठन एवं तीर्थसेवा की उपयोगिता एवं महत्ता हेतु तीर्थक्षेत्रों पर वर्षावास, आत्मसाधना एवं ज्ञान आराधना शिविरों का अभूतपूर्व कार्य चल रहा है जिससे समाज में एक अध्यात्म क्रांति का शंखनाद हो रहा है। ज्ञानदान एवं धर्मप्रभावना के क्षेत्र में ब्रह्मानंद आश्रम के सभी पदाधिकारियों का तो विशेष योगदान है ही साथ ही आप भी श्रीगुरू महाराज की प्रभावना में हमारे प्रत्येक कदम में सहभागी बनें ऐसी भावना है। सम्यक्दर्शन को प्रगट करने में सहायक सिद्ध होने वाली यह अनमोल अध्यात्म दर्शन टीका अपनी चैतन्य प्रभु की आराधना में सहायक सिद्ध हो इसी मंगलमय भावना सहित अपनी लेखनी को विराम देता हूँ। कन्हैयालाल हितैषी अध्यक्ष ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया दिनांक १४.९.१९९९ (भाद्र पद सुदी पंचमी) 4 विजय "मोही" मंत्री ब्रह्मानंद आश्रम, पिपरिया जिला होशंगाबाद (म.प्र.)

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