Book Title: Main to tere Pas Me Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 8
________________ साधक का जीवन संघर्ष, अहिंसा एवं सत्यविजय की एक अभिनव यात्रा है । वह शत्रुंजयी एवं मृत्युंजयी है । सिद्धाचल के शिखरों पर आरोहण करते समय चूकने / फिसलने का खतरा सदा साथ रहता है । पथ-च्युति चुनौती है, किन्तु प्रत्येक फिसलन एक शिक्षण है । अप्रमत्तता तथा जागरूकता पथ की चौकशी है । प्रज्ञा-संप्रेक्षक और आत्म- जागृत पुरुष हर फिसलन के पार है । संयम-यात्रा को कष्टपूर्ण जानकर पथ-तट पर बैठ जाना संकल्प - शैथिल्य है । जागरूकतापूर्वक साधना-मार्ग पर बढ़ते रहना तपश्चर्या है । सिद्धि ही सर्वोपरि कृत्य है । जीवन ऊर्जा को समग्रता के एकाग्र करने वाले के लिए कदम-कदम पर मंजिल है । [ ७ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only साधक के लिए साथ साधना में www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66