Book Title: Main to tere Pas Me Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 9
________________ जीवन श्वाँस की परिक्रमा है । इसकी पूर्णाहुति मृत्यु के द्वार पर दस्तक है । जागरूकता जीवन की जरूरत है और तन्द्रा मृत्यु की। जीवन तो तन्द्रा के उस पार है । तन्द्रा एक निद्राभरी खुमारी है। निद्रा मृत्यु की छोटी/मीठी लोरी है। इसे सभी तन्मयता से सुनते हैं और उससे अपनी पहचान बढ़ाते हैं । जो इसे समझ जाते हैं, वे मृत्यु के 'पूतना'-द्वार पर भी बोधपूर्वक जीते हैं । मृत्यु के बारे में दिमाग की श्वाँस-नली में चिन्तन को उतारते रहना जीवन का भगोड़ापन नहीं, वरन् जीवन की एक नजर-मुंदी हकीकत को स्वयं के हाथों से पहचानने का साहस है। जीवन की यात्रा मृत्यु की ओर बढ़ती जाती है। कफन ही उसका असली वस्त्र है और चिता उसकी शय्या। मैं तो क्या, हर कोई खड़ा है मृत्यु की कतार में । कतार सरकती जा रही है मरघट की ओर । जैसा जीवन जिया जा रहा है, वह जीवन नहीं, जीवन का उपहास है। जीवन के नाम पर मनाया जाने वाला जन्म दिन मृत्यु की ओर से मुबारकवाद है । काश ! दुनिया समझ सके नजदीक आती मृत्यु का यह मधुर व्यंग्य । । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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