Book Title: Main to tere Pas Me
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 39
________________ शरीर को स्त्री/पुरुष से अछूता रखना ही ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रह्मचर्य तो ब्रह्म में चर्चा है, खुद में खुद का चलना है। स्त्री/पुरुष की प्रेम-पागल स्थिति में भी स्वयं की भाव भंगिमाओं को स्फटिक-सा निर्मल फाख्ता रख लेना ब्रह्मचर्य की संजीवित अनुमोदना है । चित्त के धरातल पर चेतना जब तक स्त्री-पुरुष के बीच विभाजन-रेखा खींचती रहेगी, साभ्यभाव को ठोकरें मारती रहेगी, तब तक ब्रह्मचर्य महज खजुरिया अहंकार बनेगा, भीतर की सहज फलदायी सरसता नहीं। आवश्यक है, लम्बे समय तक उसकी चमक-दमक कायम रखने के लिए भीतर से सहज/ सम्यक् होना। ब्रह्मचर्य वह घास है, जिसे भीतर की माटी आपोआप अस्तित्व देती है। वह आरोपण नहीं है। आरोपण तनाव की जहरीली जड़ है। जो जीवन में बांसुरी की माधरी बनकर प्रवेश करे, वही चर्या ब्रह्मचर्य है। हर किसी के साथ भाई-बहिन के नाते की उज्ज्वलता का धागा बाँधना ब्रह्मचर्य को वातावरण के साथ जिन्दा रखना है । पुरुष और स्त्री दोनों में जीवन की समज्योति फैली है। दोनों का वर्ग'भेद करने वाली नजरें देह के मापदण्डों का मूल्यांकन करती हैं, देह के पार बस रहे पारदर्शी का नहीं। । [ ३८ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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