Book Title: Main to tere Pas Me
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 57
________________ स्वयं की एकरसता ही समाधि है। रसमयता का ही दूसरा नाम एकाग्रता है। मन की चंचलता रसमयता का अभाव है। जे से पके हुए बाल एक लम्बे जीवन की दास्तान है, वैसे ही रस की परिपक्वता ध्यान की मंजी हुई कहानी है। व्यक्ति का ध्यान के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। ध्यान एक व्यभिचारी का भी हो सकता है। वासना और वासना से सम्बन्धित बिन्दुओं पर वह एकाग्रचित्त रहता है। पर यह ध्यान अशुभ है। वह इसलिए, क्योंकि यह ध्यान उत्तेजना, विक्षोभ एवं आक्रोश को जन्म देता है। वह हिमालय का शिखर नहीं, अपितु सड़क का सांड है । जो स्वयं को स्वयं की नजरों में आत्म-तृप्त और आह्लाद-पूर्ण कर दे, वहीं ध्यान शुभ है। यह बाहरी संघर्ष से पलायन नहीं है । ध्यान शक्ति भी देता है और शान्ति भी। शक्ति पुरुषार्थ को प्रोत्साहन है और शान्ति उसकी मंजिल । सुबह के समय किया जाने वाला ध्यान शक्ति के द्वार पर दस्तक है और सन्ध्या समय किया जाने वाला ध्यान शान्ति की ड्योढ़ी पर। सुबह तो रात भर सोयी-लेटी ऊर्जा का जागरण है। जबकि सन्ध्या दिन भर मेहनत-मजदूरी कर थकी-माँदी चेतना की पहचान है । सुबह अर्थात् सम्यक् बहाव और संध्या अर्थात् सम्यक् ध्यान । सुबह/शक्ति कुण्डलनी से चेतना के ऊर्धारोहण की यात्रा की शुरुआत है। सन्ध्या/शान्ति उस यात्रा-यज्ञ की पूर्णाहुति है। शक्तिजागरण के लिए पद्मासन, सिद्धासन, प्राणायाम भी सहायक-सलाहकार हैं और शान्ति-अभ्युदय के लिए शवासन, सुखासन सी साझेदार हैं । । [ ५६ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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