Book Title: Main to tere Pas Me
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 51
________________ (अमरत्व मृत्यु-मुक्ति का अभियान है। जागकर जीने वाला ही इस अमृत-पथ का राही हो सकता है | जागना ही साध्य को साधना है। जागना और साधना एक ही घटना का परिचय देने वाले दो नाम हैं। __ जाग से हटना नींद की जहर-चाटी कुण्डलिनी को उकसाना है। मृत्यु की हल्की-फुल्की मुस्कान ही नींद है। मृत्यु जीवन की ड्योढ़ी को हठात् नहीं खटखटाती। वह हर रात नींद बनकर आती है और हर सुबह पुनर्जन्म दे जाती है। नींद दिन भर की थकावट के बाद लिया जाने वाला विश्राम है और मृत्यु जीवन-भर की थकावट के बाद। नींद मृत्यु की कांख में दबा मुखौटा है। यह दीप का निर्वाण अवश्य है, मगर समाधि नहीं। समाधि तो जागती हुई नींद हैं। नींद में आदमी शून्य हो जाता है, किन्तु जागती-नींद में स्वयं के अस्तित्व की अनुभूति स्थायी रहती है। नींद व्याधि है, किन्तु जागृति समाधि है। इसीकी हथेली पर रंग लाती है अमराई की मेहंदी। ध्यान में होने वाली आत्मजागरूकता उच्च पदासीन समाधि के द्वार पर ऊषा-किरण की दस्तक है। रीढ़ को बाँकी किये बिना बैठना, कमर को सीधी रखना प्रमत्तता को भीतर आने से रोकने वाला सजग पहरा है। " [ ५० ] For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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