Book Title: Main to tere Pas Me
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 14
________________ अन्धकार में प्रकाश की क्रान्ति का नाम ही सत्संग है । समर्पण के बीज से ही सत्संग का फूल खिलता है । सत्संग जीवन में सद्गुरु एवं सज्जनता का इंकलाब है । मूढ़ पुरुष सद्गुरु का सामीप्य प्राप्त करने के बाद भी धर्म को वैसे ही नहीं जान सकता जैसे चम्मच दाल के रस को। किन्तु सरल और विज्ञ पुरुष सद्गुरु के क्षणिक मिलन से ही धर्म को उसी प्रकार जान लेता है जेसे जीभ दाल के रस को । सत्संग हृदय की नौका है। सत्संग करते समय कोरे कागज की तरह स्वयं की प्रस्तुति अध्यात्म लेखन की सही तैयारी है। सद्गुरु शास्त्रीय तथ्यों का जीवन्त साक्षात्कार है। परमात्म-दर्शन के लिए सद्गुरु की शरण प्राथमिक साधना है। जिसके सम्पर्क से अन्तर का बुझा हुआ दीपक ज्योतिमय हो जाये, वही सद्गुरु है । मानव की अन्तर-निद्रा को तोड़ना ही सद्गुरु का दायित्व है। सद्गुरु ही सत्संग को स्थिरता प्रदान करता है और जीवन-मुक्ति के लिए यह जरूरी भी है। ज्ञानी का सत्संग ज्योतिर्मय दीपक के सम्पक के समकक्ष है। 0 [ १३ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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