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साधक का जीवन संघर्ष, अहिंसा एवं सत्यविजय की एक अभिनव यात्रा है । वह शत्रुंजयी एवं मृत्युंजयी है । सिद्धाचल के शिखरों पर आरोहण करते समय चूकने / फिसलने का खतरा सदा साथ रहता है । पथ-च्युति चुनौती है, किन्तु प्रत्येक फिसलन एक शिक्षण है । अप्रमत्तता तथा जागरूकता पथ की चौकशी है । प्रज्ञा-संप्रेक्षक और आत्म- जागृत पुरुष हर फिसलन के पार है । संयम-यात्रा को कष्टपूर्ण जानकर पथ-तट पर बैठ जाना संकल्प - शैथिल्य है । जागरूकतापूर्वक साधना-मार्ग पर बढ़ते रहना तपश्चर्या है । सिद्धि ही सर्वोपरि कृत्य है । जीवन ऊर्जा को समग्रता के एकाग्र करने वाले के लिए कदम-कदम पर मंजिल है ।
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साधक के लिए साथ साधना में
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