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समाधि के तीन चरण हैं-एकान्त, मौन और ध्यान । एकान्त संसार से दूरी है, मौन अभिव्यक्ति से मुक्ति है और ध्यान विचारों से निवृत्ति है । घर भर के सभी सदस्य अपने-अपने काम से बाहर गए हुए हैं। हम घर में अकेले हैं। यह हमारे लिए एकान्त का अवसर है। कुछ समय के लिए घर भी गुफा का एकान्तवास का मजा दे सकता है। अभिव्यक्ति रुकी, तो दोस्ती-दुश्मनी के सामाजिक रिश्ते अधूरे थमे रहे गये। भला, गूगों का कोई समाज/सम्बन्ध होता है। जब किसी से कुछ बोलना ही नहीं है, तो विचार क्यों/कैसे तरंगित होंगे। निर्विचार-ध्यान ही समाधि का प्रवेश-द्वार है ।
व्यक्ति रात-भर तो मौन का साधक बनता ही है, किन्तु वह सोये-सोये । दिन में नींद नहीं होती, जाग होती है, पर मन बड़बोला रहता है । अध्यात्म में प्रवेश के लिए एकान्त उपयोगी है और मौन भीड़ में भी अकेले रहने की कला है। जीवन में मौन अपना लेने से व्यावहारिक झगड़े तथा मुसीबतें भी कम हो जाएँगी।
मौन वैचारिक शक्ति का ह्रास नहीं ; अपितु उसका एकत्रीकरण है। भाषा आन्तरिक ऊर्जा को बाहर निकाल देती है, किन्तु मौन ऊर्जा-संचय का माध्यम है। बहिर्जगत से अन्तर्जगत में प्रवेश के लिए मौन द्वार है। स्वयं की नई शक्तियों का आविर्भाव करने के लिए मौन प्राथमिक भूमिका है। इसलिए मौन अपने आप में एक ध्यान-साधना है। यह वाणी-संयम का प्रहरी है, शक्तिसंचय करने वाला भण्डार है, सत्य को अनुक्षण बनाए रखने वाला मन्त्र है।
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