Book Title: Mahavira ka Sarvodaya Tirth
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ सर्वोदय-तीर्थ NEPAL दया- दम-त्याग - समाधि-निष्ठं, नय-प्रमाण प्रकृताऽऽज्जसार्थम् । ११ अधूप्यमन्यैरखिलैः प्रवादजिंन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ ६ ॥ इनसे अगली कारिकाओंमें सूत्ररूप से वर्णित इस वीरशासनके महत्वको और उसके द्वारा वीर जिनेन्द्रकी महानताको स्पष्ट करके बतलाया गया है-खास तौर से यह प्रदर्शित किया गया है कि वीर- जिन द्वारा इस शासन में वर्णित वस्तुतत्त्व कैसे नय-प्रमाणके द्वारा निर्वाध सिद्ध होता है और दूसरे सर्वथैकान्त-शासनों में निर्दिष्ट हुआ किस प्रकारसे प्रमाणबाधित तथा अपने अस्तित्वको ही सिद्ध करने में असमर्थ पाया जाता है । सारा विषय विज्ञ पाठकों के लिये बड़ा ही रोचक और वीरजिनेन्द्रकी कीर्तिका दिव्यापिनी बनानेवाला है। इसमें प्रधान -प्रधान दर्शनों और उनके अवान्तर कितने ही वाढोका सूत्र अथवा संकेतादिके रूपसे बहुत कुछ निर्देश और विवेक आ गया है । यह विषय ३६ वीं कारिका तक चलता रहा है। इस कारिकाकी टीका के अन्त में ध्वीं शताब्दी विद्वान् श्री विद्यानन्दाचार्यने वहाँ तकके वर्णित विषयक संक्षेप में सूचना करते हुए लिखा है स्तोत्रे युक्त्यनुशासने जिनपतेर्वीरस्य निःशेषतः सम्प्राप्तस्य विशुद्धि - शक्ति - पदवीं काष्ठां परामाश्रिताम् । निर्णीतं मतमद्वितीयममलं संक्षेपतोऽपाकृतं तद्वाद्यं वितथं मतं च सकलं सद्धीधनैत्रुध्यताम् || अर्थात् यहाँ तक इस युक्त्यनुशासनस्तोत्रमें शुद्धि और शक्तिकी पराकाष्ठाको प्राप्त हुए वीर जिनेन्द्रके अनेकान्तात्मक

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45