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चित्तबालक ! मा त्याक्षीरजस्रं भावनौषधिः ।।
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चिकित्सा विज्ञान का यह अनुसंधान है कि शरीर में सामान्यतः पैदा होने वाले रोग मौत का कारण नहीं बनते किन्तु ये रोग लम्बे समय तक शरीर में जम जाएं तो मौत का कारण अवश्य बनते हैं। वैसे कर्जा मनुष्य को बरबाद नहीं करता परंतु अधिक समय तक जब कर्जा नहीं चुकाया जाए तो वह निश्चित रूप से व्यक्ति को बरबाद करता है। जैसे रास्ते का Traffic समस्या रूप नहीं है किन्तु वह ट्राफिक जब जाम हो जाता है तो समस्या बन जाता है। ठीक इसी प्रकार मन में आने वाले नकारात्मक और बुरे विचार मात्र जीवन का पतन नहीं करते किन्तु ये विचार जब मन की गहराई में जड़ें जमा लेते हैं तब जीवन में कुंठा, निराशा और हताशा का साम्राज्य फैल जाता है। ज्ञानियों का कथन है कि जब तक कर्मों की परवशता तथा कुसंस्कारों की आधीनता रहेगी तब तक बुरे विचारों को आने से रोका नहीं जा सकता किन्तु आने वाले अशुभ विचारों का तत्काल उपचार हो जाए तो वे अचेतन मन पर प्रभाव नहीं जमा पाएंगे। इसका सबसे आसान उपचार यह है कि बुरे विचारों का न सम्मान कीजिए न उन्हें
सुविधा दीजिए तो वे स्वतः विलीन हो जाएंगे। स्पष्ट है कि जिस मेहमान Jain Edue का आदर नहीं किया जाता वह अपने आप शीघ्र विदा हो जाता है। 100