Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 141
________________ प्रार्थना का अभिप्राय है - हे परमात्मन् ! जिस मार्ग पर चलकर आप समस्त दुःखों से मुक्त बने हो, वह मुझे भी प्राप्त हो जाए। प्रार्थना याचना नहीं है क्योंकि याचना का अर्थ है - हे प्रभु ! जिस मोह माया को छोड़कर आप भगवान बने हैं वह मुझे मिल जाए। प्रार्थना और याचना में यही सूक्ष्म अंतर है कि प्रार्थना करने वाला पुजारी कहलाता है और याचना करने वाला भिखारी । प्रार्थना में मन का तार जब तक आस्था के Power House से नहीं जुड़ जाता तब तक न प्रकाश मिल सकता है न शक्ति । भक्ति से ही शक्ति का जागरण होता है । यदि भक्त की सच्ची प्रार्थना को सुनकर भगवान कहें कि मांग ले तुझे जो भी चाहिए तो हीरे-मोती, धन-दौलत और गाड़ी बंगला मांगने की भूल मत कर लेना । यदि यह सब मांग भी लिया तो इनसे न कभी संतुष्टि मिलेगी न ही शांति प्राप्त होगी अपितु लालसा बढ़ती ही जाएगी। पार्थना 1 परमात्मा से तो सिर्फ इतना ही कहना - जैसे आप हैं वैसा मुझे भी बना दीजिए। जो आपने किया है वैसा ही करने की शक्ति मुझे प्रदान कीजिए | ऐसी कृपा कीजिए कि आप जैसी भगवत्ता मुझमें भी प्रकट हो जाए। प्रभु के चरणों में तो उन जैसा दिव्य आचरण ही मांगना । ऐसे ईश्वरीय आचरण में ही अनन्त सुख और अमिट संपदाओं का निवास हुआ करता है। तुं मने भगवान एक वरदान आपी दे । ज्यां वसे छे तुं मने त्यां स्थान आपी दे ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org131

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