Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 167
________________ * विपत्ति ।। दुःश्वैरात्मनं भावयेत् ।। जीवन में कष्टों की अग्नि जलने दो, उससे घबराओ मत। जैसे एक बीज को पनपने के लिए खाद, हवा, पानी के साथ-साथ सूर्य के ताप की भी उतनी ही जरूरत होती है। ठीक इसी प्रकार जीवन में दुःख की भी अनिवार्यता है। कष्टों की अग्नि का स्पर्श पाकर जीवन की मोमबत्ती प्रज्वलित हो जायेगी, गुणों की अगरबत्ती महक उठेगी और चरित्र का स्वर्ण निखर आयेगा। कहते हैं विपत्ति वह हीरक रज है जिससे ईश्वर अपने रत्नों की POLISH करता है। कष्ट सहन करने से मनुष्य के भीतर तीव्र स्फूर्ति जागती है। जैसे गेंद को नीचे फेंकने से वह अधिक वेग से उछलती है। भाप को दबाने से वह तीव्र वेग के साथ धक्का मारती है और चंदन को घिसने से वह भी सुगंध एवं शीतलता देता है। विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला। विपत्तियाँ तो हमें आत्मज्ञान कराती हैं। वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। धैर्यवान के लिए विपत्ति वरदान है। यदि सीता-हरण न होता तो राम का यश कैसे फैलता....... .? अपने को विपत्तियों से लड़ने के लिए तैयार कर लो। चिन्तनकारों ने लिखा है दुःखों के पत्थरों की यह नदी बह रही है, तनकर खड़े हो जाओ और उस पार पहुँचो। 157 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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