Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 157
________________ एकाग्रता ।। नासाग्रन्यस्तदृग्द्वन्द्वः ।। सूर्य की हर किरण दिव्य है, दीप्तिमति है परंतु जब वे केन्द्रित होती हैं तभी वे दहकती ज्वाला बनती हैं। बिखरी हुई किरणें साधारण-सा ताप देकर रह जाती हैं, ज्वाला नहीं बन सकती जबकि उनमें जलाने की शक्ति रही हुई है। यही स्थिति मानव-मन की भी है। कितना ही अच्छा शक्तिशाली मन क्यों न हो परन्तु वह बिखरा हुआ है, इधर उधर उलझा हुआ है और उपस्थित कार्य के साथ केन्द्रित नहीं है तो वह कुछ भी नहीं कर पाएगा। जैसे ही मन केन्द्रित होगा उसमें से वह दिव्य शक्ति प्रस्फुटित होगी जो कर्म को प्राणवान बना देगी। केन्द्रित मन ही सिद्धि का द्वार खोलता है । मन को एकाग्र करने के लिए भगवान महावीर ने नासाग्र दृष्टि का प्रयोग किया था। यदि आँखों की पलकों को पूर्ण बंद न करके दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर स्थिर किया जाए तो मन एकाग्र हो जाता है क्योंकि मन का और आँखों का गहरा रिश्ता है। आँखों की पलकें जितनी स्थिर रहेगी मन भी उतना ही स्थिर रहेगा। गौतम बुद्ध ने श्वास के निरीक्षण के माध्यम से मन को एकाग्र किया था। आते-जाते श्वास पर मन को लगाने का अभ्यास किया जाए तो मन एकाग्र हो जाता है। जिस दिन एकाग्रता सध जाएगी उस दिन भीतर की संपदा नजर आएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only y.org47 www.jainelibrary.org

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