Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 163
________________ ens भावनाओं में बहने की प्रवृत्ति भावुकता कहलाती है। भाव विचारों की ऊर्जस्वित अवस्था है अर्थात् विचार जब इतने अधिक प्रभावी हो जाते हैं कि वे शरीर के अंगों द्वारा प्रदर्शित होने लगते हैं तो यह अवस्था भावुकता कहलाती है। स्पष्ट है कि इस स्थिति में व्यक्ति उचितानचित के निर्णय से परे हो जाता है। भावूकता की उत्तेजना हर हालत में घातक है क्योंकि इस अवस्था में कल्पना शक्ति बहत तेजी से कार्य करती है। गुण और दोष के उत्पन्न होने का कारण भाव ही है। भावों का जैसा धरातल होगा गति भी उसी तरफ अधिक होगी। म कड़ी के जाले की तरह काल्पनिक जाल बुनना और फिर उस जाल में फंस जाना कोरी भावुकता है। यदि आप कल्पना शक्ति के साथ अपने विवेक और तर्क शक्ति का भी सजग होकर प्रयोग करें तो यह कल्पना शक्ति भी एक दिन वरदान सिद्ध हो सकती है। अपनी परिस्थिति और क्षमता को पूरी तरह नापकर बुद्धि कौशल से जो व्यक्ति लक्ष्य निर्धारित करता है और उसे पाने के लिए खूब मेहनत करता है वह भावुकता में नहीं बहता। अतः जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए यथार्थता की ठोस जमीन पर खड़ा रहना अनिवार्य है। 153 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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