Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 146
________________ धर्म आचार्य कुंदकुंद ने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा - वस्तु का स्वभाव धर्म है। जैसे पानी का स्वभाव है नीचे की तरफ बहना और अग्नि का स्वभाव है। ऊपर की तरफ जाना। पानी बिना किसी प्रयास के पहाड़ी से घाटी की ओर बहता है तथा अग्नि को जितना मर्जी दबाओ वह कभी नीचे की तरफ नहीं जाती क्योंकि स्वभाव सदा प्रयासातीत होता है, मनुष्य को छोड़कर सभी कुछ इस संसार में स्वभाव के अनुसार ही गति करता है। जैसे पानी बरसेगा, धूप पड़ेगी, पानी भाप बनेगा, बादल बनेंगे सब कुछ अपने - अपने स्वभाव से होता है। स्पष्ट है कि धर्म आत्मा का स्वभाव है। धर्म के अभाव में जीवन में मात्र दुःख ही रह जाएगा। महाभारत में लिखा है - यतो धर्मस्ततो जयः अर्थात् जहाँ धर्म होता है वहीं विजय होती है। धर्म का मूल सम्बन्ध दुःख का निरोध और आनंद की उपलब्धि से है। धर्म विचार नहीं उपचार है क्योंकि वह जीवन का परम विज्ञान है। विज्ञान प्रयोगात्मक होता है। जिस धर्म के साथ प्रयोग नहीं है, कुछ जानने या आचरण करने की भूमिका नहीं है तो वह धर्म रूढ़ हो जाता है और रूके हुए पानी की तरह गंदा हो जाता है। धर्म को जो भी धारण करता है उसी का जीवन परिवर्तित होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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