Book Title: Life Style
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 135
________________ क्रोध एक क्षणिक पागलपन है जो सदा अंदर रहता है। लोग कहते हैं - ''मुझे क्रोध आ गया'' किन्तु आया कहीं से नहीं वह तो भीतर ही था। जैसे पानी में कंकर डालने से पानी में रही हई गंदगी बाहर आ जाती है वैसे ही निमित्त पाकर क्रोध भी भीतर से बाहर आ जाता है। जब भी क्रोध उठता है तब समझ को बाहर निकालकर बुद्धि के द्वार पर चटखनी लगा देता है। इस अवस्था में सद्गुण ऐसे खो जाते हैं जैसे समुद्र में नदियाँ । कहा भी है। - क्रोध दिमाग का धुंआ है अतः क्रोधी का सुख कपूर की तरह उड़ जाता है। मन का उथलापन ही क्रोध है। जहाँ नदी गहरी होती है वहाँ शोरगुल बंद हो जाता है और जब घड़ा भर जाता है तो आवाज नहीं आती। ठीक इसी प्रकार जब व्यक्ति में गहराई आ जाती है तब उसके जीवन से क्रोध विलीन हो जाता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है - क्रोध का बेहतरीन इलाज खामोशी है। इसलिए यह सत्य है कि क्रोध कितना भी कठोर क्यों न हो वह मौन को नहीं सह पाता। मौन तो वह यंत्र है जिसके सामने क्रोध की सारी शक्ति विफल हो जाती है। इसलिए भर्तृहरि कहते हैं - क्रोध को जीतने में मौन जितना सहायक होता है उतनी और कोई भी वस्तु नहीं। {{ कडवा फल छे क्रोधना {{ क्रोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 12

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