Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 297
________________ 20. २०वें पद्य में उच्च डूंगरों से घिरा हुआ और अजेय डूंगहपुर (डूंगरपुर) और महाराजा कुमारपाल द्वारा निर्मापित ईडरपुर में ऋषभदेव भगवान को तथा तलहट्टिका में विद्यमान समग्र चैत्यों को कवि नमस्कार करता है। 21. पद्य 21 में तारण (तारङ्गा) में कुमारपाल द्वारा निर्मित अजितनाथ भगवान के मन्दिर में श्री धर्मसूरि द्वारा संस्थापित जिनेश्वरों को वन्दन करता है। इसी प्रकार आरास ( ), पोसीन ( ), देवेरिका (दिवेर), चैत्र ( ), चङ्गापुर (चाङ्ग) आदि में विराजमान जिनेन्द्रों को भी नमस्कार करता है। 22. यह मेदपाट देश जो कि चारों तरफ पर्वतों से आच्छादित है, उसके मध्य भाग में गाँव-गाँव में विशाल-विशाल अनेक तीर्थंकरों के देव मन्दिर हैं। जो कि ध्वजा पताकाओं और कलशों से. शोभित है। इनमें से कई मन्दिरों को मैंने देखा है और कई मन्दिरों को मैं नहीं देख पाया हूँ। उन सब जिनेश्वरों को सम्यक्त्व की वृद्धि के लिए मैं नमस्कार करता हूँ। 23. देश-देश में, नगर-नगर में और ग्राम-ग्राम में जो भी अचल जिनमन्दिर हैं, जिनके मैंने दर्शन किए. हैं या नहीं किए है उन सब छोटे-बड़े मन्दिरों को मैं नित्य ही वन्दन करता हूँ। साथ ही देव और मनुष्यों द्वारा वन्दित तीन लोक में स्थित शाश्वत या अशाश्वत समस्त तीर्थङ्करों को मैं नमस्कार करता 24. इस प्रकार राजगच्छ में उदयगिरि पर सूर्य के समान श्री धर्मघोषसूरि की वंश परम्परा में हरिकलश यति ने भक्ति पूर्वक तीर्थयात्रा करके अपने नित्य स्मरण के लिए और पुण्य की वृद्धि के लिए प्रमुदित हृदय से तीर्थमाला द्वारा स्तवना की है। . इसमें कवि ने जिन-जिन स्थानों का नामोल्लेख किया है उनमें से कतिपय स्थानों के जो आज नाम हैं वे मैंने कोष्ठक में दिए हैं। अन्य स्थलों के नामों के लिए शोध विद्वानों से यह अपेक्षा है कि वे वर्तमान नाम लिखने की कृपा करें ताकि मैं भविष्य में संशोधन कर सकूँ। कवि हरिकलश यति व्याकरण, काव्य, अलङ्कार शास्त्र, छन्दों का तो विद्वान् था ही साथ ही २०३-२१वें पद्य को देखते हुए यह कह सकते हैं कि वह राग-रागनियों का भी अच्छा जानकार था। इस स्तव माला में प्रयुक्त छन्दों की तालिका इस प्रकार है: भुजङ्गप्रयात - 1, 12, 17; अनुष्ठब् - 2; शार्दूलविक्रीडित - 3, 4, 5, 11, 15, 19; इन्द्रवंशा -6; स्रग्धरा -7,8,14, 22, 24; आर्या - 9; वसन्ततिलका - 10,16; १३वाँ पद्य अस्पष्ट है; उपजाति - 18; १९वाँ-२०वाँ कड़खा राग में गीयमान देशी - 'भावधरी धन्यदिन आज सफलो गिणुं' में है और २३वाँ पद्य मन्दाक्रान्ता छन्द में है। __इस तीर्थमाला स्तव की प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संग्रहालय में ग्रन्थाङ्क 22728 पर विद्यमान है। लम्बाई चौड़ाई 2148.5 सेंटीमीटर है। लेखन काल अनुमानतः १६वीं शताब्दी है। लेखन प्रशस्ति नहीं है। पत्र संख्या 2 है। प्रथम पत्र के प्रथम भाग पर और द्वितीय पत्र के प्रथम भाग पर स्वस्तिक चित्र भी अंकित हैं। जिसमें श्लोक संख्या 2 और 17 के अक्षरों का लेखन है। पत्रों के हांसिए. में पद्य संख्या 9 और पद्य संख्या 13 भिन्न लिपि में लिखित हैं। कई अक्षर अस्पष्ट हैं। पद्य 6 के प्रारंभ के दो अक्षर अस्पष्ट हैं। 286 लेख संग्रह

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