Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 307
________________ आबू के विष्णुमंदिर का एक लेख गत वर्ष ग्रीष्मऋतु के दिवसों में विहार (प्रवास) करते हुए हम लोग आबू पहुँचे। अर्बुदगिरि तीर्थस्थ विमलवसति आदि मन्दिरों के दर्शन किये। वहाँ की स्थापत्यकला के उत्कृष्ट नमूने देखकर हृदय आनन्द से भर गया। एक दिन प्रात:काल में मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी, मैं और भाई श्री उमाकान्त (जो जैन मूर्तिकला पर रिसर्च कर रहे थे, और अब तो उन्हें इस विषय के थीसिस पर पी एच.डी. की उपाधि भी प्राप्त हो गई है) तीनों ही कन्याकुमारी का स्थान देखने के लिये गये। कन्याकुमारी स्थान के पास ही एक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में द्वारकानाथजी का मन्दिर है जिसकी घूमटी इत्यादि गिर चुकी है, स्तम्भ आदि के अवशेष भी खण्डहर रूप में यत्र-तत्र पड़े हैं। उस मन्दिर में भी हम लोग गये। तत्रस्थ शेषनाग-शय्याशयित विष्णु आदि की कुछ मूर्तियाँ हैं, जो स्थापत्य-कला की दृष्टि से १०-११वीं शताब्दी की प्रतीत होती हैं। उनका ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व समझकर भाई उमाकान्त तो उनके चित्र लेने में संलग्न हो गये। उसी मन्दिर में प्रवेश करने पर जमणा बाजू के गोखले के थंभे पर निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण (अंकित) देखा। ' प्रयत्न कर उसकी प्रतिलिपि भी हम लोगों ने ली। वह इस प्रकार है: 'ॐ संवत् 15 आषाढादि वर्षे शाके 1357 (?) प्रवर्त्तमाने फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ सोमवासरे श्रीगूर्जर श्रीमालज्ञातीय सेथालगोत्रे श्रीखरतरपक्षीय मंत्रि विजपाल सुत मंत्रि मंडलिक तत्पुत्र मं० रणसिंह तत्पुत्र 4 प्रथमः सा० सायरः, द्वितीयः सा० खेटाभिधः, तृतीय सा० सामन्तः, चतुर्थः सा० चाचिगः। तन्मध्यतः सा० सायर भा० बाई तत्पुत्र४ पुत्री 3 प्रथमः सा० पद्माभिधः, द्वितीयः सा० रत्नाख्यः, तृतीयः सा० आसाख्यः, चतुर्थः सा० पाचाख्यः, पञ्चमधर्मपुत्रः सा० पूर्याभिधान, तद्भगिनी बाई मल्हाई, बाई रंगाई, बाई लखीई। एतन्मध्ये श्री अर्बुदाचलमहातीर्थ यात्रार्थं समागतेन पूर्वयोगिनीपुरवास्तव्येन पश्चात् साम्प्रतं अहमदाबादश्रीनगरनिवासिना श्रीक्षत्रपकुलप्रसिद्धन साह आसाकेन प्रथम भा० माघी, द्वितीय भा० हमीरदे, तृतीय भा० टबकू पुत्र सा० जीवराजप्रभृतिसमस्तकुटुम्बसहितेन स्वभुजोपार्जितवित्तेन चितोल्लासतः श्रीमद्विष्णुदेवप्रासादजीर्णोद्धारः कारितः श्रीमद्देवगुरुप्रसादात् आचन्द्रार्कं जीयात् // ' अर्थात् - विक्रम संवत् 1525 शक 1357 (?) के फाल्गुन शुक्ला नवमी सोमवार को श्रीगूर्जर, श्रीमालज्ञातीय, सेथालगोत्रीय, खरतरपक्षीय मंत्री विजपाल के पुत्र मंत्री मण्डलिक के पुत्र मंत्री रणसिंह थे। इनके चार पुत्र थे, 1. साह सायर, 2. साह खेटा, 3. साह सामन्त, और 4. साह चाचिग। इनमें साह सायर की पत्नी बाई पल्ही के चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं, जिनमें प्रथम पुत्र पद्मा नामक, द्वितीय पुत्र साह रत्ना नामक, तृतीय पुत्र साह आसा नामक, चतुर्थ पुत्र साह पांचा नामक और पञ्चम धर्मपुत्र साह पूया नामक थे। इनकी तीनों बहिनों के नाम क्रमशः बाई मल्हाई, बाई रंगाई, और बाई लखीई थे। इनमें से साह आसा नामक पुत्र जो क्षत्रपकुलप्रसिद्ध था तथा जो पूर्व समय में योगिनीपुर (दिल्ली) का निवासी था और पश्चात् (किसी भी कारणवश) अहमदाबाद का निवासी बन चुका था, जिसकी तीन पत्नियाँ थीं - 1: माघी, लेख संग्रह 296

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