Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 345
________________ वीरा श्राविका निर्मापित शाला एवं विशाल शाला का नामावशेष भी बडलू में प्राप्त नहीं है। केवल . उसकी कीर्ति का स्मरण कराने वाला यह खंडित शिलापट्ट है। 5. दादाबाड़ी- गाँव के बाहर तालाब के किनारे, ठाकुर के महलों के नीचे दादाबाड़ी है। अत्यन्त रमणीय स्थान है। यहाँ दादा जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूरि के चरण हैं। चरणों पर लेख उत्कीर्ण है। लेख के अनुसार वि० सं० 1854, फाल्गुन शुक्ला 3 के दिन लूणिया गोत्रीय साह श्री हेमराजजी तिलोकचंदजी करमचंदजी ने चरणों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठा भट्टारक जिनचन्द्रसूरि .. के विजयराज्य में बड़लू ग्राम में हुई। इस दादाबाड़ी की दशा भी शोचनीय हो रही है। इस लेख के अनुसार जहाँ तक मैं समझता हूँ इसके निर्माता लूणिया हेमराजी तिलोकचंदजी या इनके वंशज बड़लू से चलकर अजमेर आये और वहाँ से श्री थानमलजी हैदराबाद आकर बसे। रायबहादुर रायसाहब बने। इन्हीं के पौत्र श्री सुरेन्द्रकुमारजी लूणिया विद्यमान हैं जो हैदराबाद श्रीसंघ के प्रमुख हैं, समृद्धिमान हैं। अतः मेरा उनसे विनम्र अनुरोध है कि अपने पूर्वजों द्वारा निर्मापित बड़लू की ' दादाबाड़ी का जीर्णोद्धार एवं समुचित व्यवस्था कर अपने पूर्वजों की कीर्ति को चिरस्थायी बनावें। [कुशल-निर्देश, वर्ष-१३, अंक-१२] 00 334 लेख संग्रह

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